गुर गोविंद तौ एक है, दूजा यहू आकार।
आपा भेट जीवत मरै, तौ पावै करतार।।
(कबीर)
आत्मा, परमात्मा व गुरू एक ही हैं, ये दो नही है, अगर कोई दूसरी वस्तु है तो वह है यह शरीर व अहं | गुरू को शरीर की परिधियो में सिमित करना अल्पग्यता है गुरू और परमात्मा को अलग मान्ना अल्पग्यता है, तो गूरू कया है?
जब हम आत्मपद या आनंद की और आकृषित होते है अर्थात सत्य मार्ग की और चलते हैं तो इसे ही अंधेरे से प्रकाश की और चलनी कहते है, एक बात और ध्यान देना की अंधेरे में केवल प्रकाश के कारण ही अंधेरे हम मार्ग खोज सकते हैं, ये प्रकाश ही आनंद है यही प्रमात्मा है, और यही गुरू है, इसको पाने के लिय शरीर और अहं भाव से बाहर आना होगा, इस आकार और अहं की परिधियो का पार करना ही माने हुऐ 'आप' की भेंट कहलाता है, इसके पश्चात ही सवंय,परमात्मा या गुरू को प्राप्त कर पाओगे..
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