शब्द में, संगीत में खोया जा सकता है। ध्वनि सम्मोहन में, नृत्य में 'जो है' उसका विस्मरण हो सकता है। यह विस्मरण और बेहोशी सुखद भी मालूम हो सकती है, पर यह सतसंग नहीं है। यह मूच्र्छा है, जब कि सतसंग चेतना में जागरण का नाम है।
सतसंग क्या कोई क्रिया है? क्या कुछ करना सतसंग है?
नहीं, सतसंग क्रिया नहीं, वरन चेतना की एक स्थिति है। सतसंग की नहीं जाती है, सतसंग में हुआ जाता है। सतसंग मूलत: अक्रिया है। जब सब क्रियाएं शून्य हैं और केवल साक्षी चैतन्य शेष रह गया है, ऐसी स्थिति का नाम सतसंग है। सतसंग शब्द से 'करने' की ध्वनि निकलती है। ध्यान शब्द से भी 'करने' की ध्वनि निकलती है। पर दोनों शब्द क्रियाओं के लिए नहीं, चेतना की स्थिति के लिए प्रयुक्त हुए हैं।
'शून्य में, मौन में, नि:शब्द में होना सतसंग है, ध्यान है।'
तो सतसंग के लिए क्या करें, 'थोड़े समय को कुछ भी न करें। बिलकुल विश्राम में अपने को छोड़ दें। चुपचाप मन को देखते रहें, वह अपने से शांत और शून्य हो जाता है। इसी शून्य में, सत्य का सान्निध्य उपलब्ध होता है। इसी शून्य में वह प्रकट होता है, जो भीतर है और वह भी जो बाहर है। फिर बाहर और भीतर मिट जाते हैं और केवल वही रह जाता है 'जो है'।' इस शुद्ध 'है' की समग्रता का नाम सतसंग है।
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