तुमने कितनी अंधी श्रद्धा, धारणा, और कल्पनाओं में अपने को छिपा लिया है। और इन मिथ्या सुरक्षाओं में तुम अपने को सुरक्षित समझ रहे हो। यह सुरक्षा नहीं, आत्मवंचना है।
मैं तुम्हारी इस निद्रा को तोड़ना चाहता हूं। स्वप्न नहीं, केवल सत्य ही एकमात्र सुरक्षा है।
और तुम यदि स्वप्नों को छोड़ने का साहस करो तो सत्य को पाने के अधिकारी हो जाते हो। कितना सस्ता सौदा है! सत्य को पाने के लिए और कुछ नहीं केवल स्वप्न ही छोड़ने पड़ते हैं।
विचारों की, स्वप्नों की, कल्पना-चित्रों की मूच्र्छा को तोड़ना है। *उससे, जो कि दिख रहा है, उस पर जागना है, जो कि देख रहा है।*
'वह द्रष्टा ही सत्य की ओर ले जाता है, उसे पा लो, साक्षी प्रकट होजाएगा ऐसा हुआ तो समझो कि जीवन पा लिया है।
Tuesday, February 19, 2019
झूठी सुरक्षा में मत छीपो
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