जीव को ८४ लाख योनियों के बाद आवागमन से छूटने के लिए मनुष्य तन प्राप्त होता है । परन्तु यह तो तभी सम्भव है जब उसे अपने मूल स्वरूप तथा धाम का पता हो । आज दिन तक सभी मानव, देवी-देवता तथा अवतार इस लक्ष्य को खोज-खोज कर हार गए, परन्तु कोई यह भी न जान सका कि मै कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ और मुझे जाना कहाँ है ? कलयुग में अवतरित तारतम ज्ञान ने, न केवल इन सब उलझनों को सुलझा दिया, अपितु परमार्थ सिद्धि व अखण्ड मुक्ति का मार्ग भी दिखाया है । श्री मुख वाणी में वर्णित अद्भुत विहंगम मार्ग (चितवनि) के द्वारा सरलता से उन लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है, जिन्हें प्राप्त करने के लिए मनुष्यों ने कई जन्मों तक तथा देवी-देवताओं ने कई कल्पांतों तक कठोर तपस्या की परन्तु सफल न हो सके
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