Tuesday, November 17, 2015

अरे मन !

अरे मन ! तू परमात्मा का गुणगान क्यों नहीं करता ? इस भूल भुलैया के खेल वाले संसार में तू क्यों धोखा खा रहा है ? मुक्ति एवं भुक्ति ये दोनों अत्यन्त प्रबल चुड़ैलें हैं, तू इनके चक्कर में क्यों आ रहा है | स्त्री, पुत्र, धन, यह तीनों तिजारी के समान हैं | तू इनको क्यों अपना रहा है ? इन इन्द्रियों के विषयों को पीकर तू क्यों इतना सुख मान रहा है ?  यह मनुष्य का शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है | यह चार दिन का जीवन जा रहा है, अतएव शीघ्र ही परमात्मा का ध्यान कर |

प्रणाम जी

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