वंदनीय है उपनिषत
वंदनीय है उपनिषत , यामे ज्ञान महान।
श्याम प्रेम बिनु ज्ञान सो , प्राणहीन तनु जान।।
भावार्थ - उपनिषत् का ग्यान महान हैं। अतः वन्दनीय हैं। उनमें अनंत ज्ञान भरा पड़ा है। उपनिषद के ग्यान को दंडवत प्रणाम है..किन्तु अगर किसी भी ग्यान से परमात्मा का प्रेम नहीं बढ़ता तो वह ज्ञान , प्राणहीन शरीर के समान है।
एक बहुत बड़े सूफी फकीर हसन के पास एक युवक आया। वह बहुत कुशल तार्किक था पंडित था, शास्त्रों का ज्ञाता था। जल्दी ही उसकी खबर पहुंच गई और हसन के शिष्यों में वह सब से ज्यादा प्रसिद्ध हो गया। दूर—दूर से लोग उससे पूछने आने लगे। यहां तक हालत आ गई कि लोग हसन की भी कम फिक्र करते और उसके शिष्य की ज्यादा फिक्र करते। क्योंकि हसन तो अक्सर चुप रहता। और उसका शिष्य बड़ा कुशल था सवालों। को सुलझाने में।
एक दिन एक आदमी ने हसन से आकर कहा, इतना अदभुत शिष्य है तुम्हारा! इतना वह ग्यान जानता है कि हमने तो दूसरा ऐसा कोई आदमी नहीं देखा। धन्यभागी हो तुम ऐसे शिष्य को पाकर। हसन ने कहा कि मैं उसके लिए रोता हूं क्योंकि वह केवल जानता है। और जानने में इतना समय लगा रहा है कि भावना कब कर पाएगा? परमात्मा से प्रेम कब कर पाएगा? जानने में ही जिंदगी उसकी खोई जा रही है, तो भाव कब करेगा? मैं उसके लिए रोता हूं। उसको अवसर भी नहीं है, समय भी नहीं है। वह बुद्धि से ही लगा हुआ है।
बुद्धि से सब कुछ मिल जाए, प्रेम का स्रोत नहीं मिलता। वह वहा नहीं है। बुद्धि एक उपयोगिता है; एक यंत्र ‘ है, जिसकी जरूरत है। लेकिन वह आप नहीं हैं। जैसे हाथ है, ऐसे बुद्धि एक आपका यंत्र है। उसकी उपयोग करें, लेकिन उसके साथ एक मत हो जाएं। उसका उपयोग करें और एक तरफ रख दें। अन्नय प्रेम से ही परमात्मा मिलेंगे...
प्रणाम जी
वंदनीय है उपनिषत , यामे ज्ञान महान।
श्याम प्रेम बिनु ज्ञान सो , प्राणहीन तनु जान।।
भावार्थ - उपनिषत् का ग्यान महान हैं। अतः वन्दनीय हैं। उनमें अनंत ज्ञान भरा पड़ा है। उपनिषद के ग्यान को दंडवत प्रणाम है..किन्तु अगर किसी भी ग्यान से परमात्मा का प्रेम नहीं बढ़ता तो वह ज्ञान , प्राणहीन शरीर के समान है।
एक बहुत बड़े सूफी फकीर हसन के पास एक युवक आया। वह बहुत कुशल तार्किक था पंडित था, शास्त्रों का ज्ञाता था। जल्दी ही उसकी खबर पहुंच गई और हसन के शिष्यों में वह सब से ज्यादा प्रसिद्ध हो गया। दूर—दूर से लोग उससे पूछने आने लगे। यहां तक हालत आ गई कि लोग हसन की भी कम फिक्र करते और उसके शिष्य की ज्यादा फिक्र करते। क्योंकि हसन तो अक्सर चुप रहता। और उसका शिष्य बड़ा कुशल था सवालों। को सुलझाने में।
एक दिन एक आदमी ने हसन से आकर कहा, इतना अदभुत शिष्य है तुम्हारा! इतना वह ग्यान जानता है कि हमने तो दूसरा ऐसा कोई आदमी नहीं देखा। धन्यभागी हो तुम ऐसे शिष्य को पाकर। हसन ने कहा कि मैं उसके लिए रोता हूं क्योंकि वह केवल जानता है। और जानने में इतना समय लगा रहा है कि भावना कब कर पाएगा? परमात्मा से प्रेम कब कर पाएगा? जानने में ही जिंदगी उसकी खोई जा रही है, तो भाव कब करेगा? मैं उसके लिए रोता हूं। उसको अवसर भी नहीं है, समय भी नहीं है। वह बुद्धि से ही लगा हुआ है।
बुद्धि से सब कुछ मिल जाए, प्रेम का स्रोत नहीं मिलता। वह वहा नहीं है। बुद्धि एक उपयोगिता है; एक यंत्र ‘ है, जिसकी जरूरत है। लेकिन वह आप नहीं हैं। जैसे हाथ है, ऐसे बुद्धि एक आपका यंत्र है। उसकी उपयोग करें, लेकिन उसके साथ एक मत हो जाएं। उसका उपयोग करें और एक तरफ रख दें। अन्नय प्रेम से ही परमात्मा मिलेंगे...
प्रणाम जी
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