Thursday, March 31, 2016


जब सामान्य सी हवा चलती है तो पाल के सहारे नाव उचित गति से चलती रहती है, किन्तु आंधी में पाल के तने रहने से नाव के उलट जाने और पाल के फट जाने का खतरा हमेशा ही बना रहता है।

इसी प्रकार बांस मन, पाल चित्त है और रस्सी बुद्धि है। जब दूैत का बहुत अधिक आकर्षण सामने होता है, तो बुद्धि के द्वारा उनकी विवेचना कोई सार्थक फल नहीं देती, क्योंकि यदि हृदय के अन्दर (अहं में) सत्य का बोध नहीं है, तो चित्त (पाल) में तो जन्म-जन्मान्तरों के विषय सुखों के संस्कार भरे पड़े हैं। कुसंस्कारों के जागृत होने का कारण पाप में डूबने में जरा भी देर नहीं लगेगी।
इसलिय हे जीव ! इस भवसागर से सुरक्षित निकल जाने का एक ही मार्ग है कि तूं अदूैत परमात्मा के प्रेम में चलते हुए अदूैत की गहन्ता में उतर कर एक मात्र अदूैत परमात्मा समर्पण का मार्ग अपना। अब इस भयानक स्थिति में दूैत से शुष्क हुये हृदय से मन, चित्त और बुद्धि से होने वाला मनन, चिन्तन और विवेचन भवसागर से पार नहीं करा पायेगा। जिस प्रकार भयानक आंधी में रस्सी खींचकर पाल को निष्क्रिय कर दिया जाता है, उसी प्रकार विषय - विकारों की प्रबलता में केवल समर्पण और प्रेम का अस्त्र ही काम में आयेगा। दूैत बुद्धि की अधिक चतुराई तुम्हें अदूैत में समर्पित नहीं होने देगी, जिसका परिणाम यह होगा कि भवसागर को पार करने से पहले ही नाव डूब जायेगी। इसलिय तूं सही मार्ग अपना कर अपने लक्ष्य को पराप्त कर..

प्रणाम जी

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