Monday, March 14, 2016

सुप्रभात जी
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परमात्मा याने इश्क तो हमेशा नया नया आनंद देने वाला होता है, और अगर उस इश्क को पाना है तो..आसन फूको, लोटा फेंक के तोड़ दो, जपमाला, प्याला, और दंड न पकड़ो, मैं ऊंची आवाज में कहता हूं की सब तरह के असत को छौड़ दो कयोंकी चाहे किसी रूप में भी हो असत तो असत है..
तूने मस्जिद में उम्र गंवा दी, पर तेरा अंतःकरण अभी भी वैसा ही मैला ही है.. , परमात्मा से जुडऩे के लिए कभी उसको नही ध्याया, फिर तू अब क्यों रोता है।
जब मैने सत्य परमात्मा के प्रेम का पाठ पढ़ा, जड से मंदिरो व मस्जिदो से मेरे जीव को डर लगने लगा,तब मैं वहा से  विमुख हुआ तो परमात्मा को अपने ही ह्रदयघर में पाया|
जब परमात्मा के प्रेम का रहस्य जाना तब उसनें मैं-मैं, तू-तू को मार दिया, भीतर-बाहर की सफाई हो गई, सब तरफ उसे ही पाया।
वेद-पुराण व कुरान आदी अनेक ग्रन्थ पढ़-पढ़ कर थक गए, भिखारी बनके उनके दर पर मत्था रगड रगड करके सिर भी घिस गए, परमात्मा न तीर्थ में मिला और न ही मक्के में, जिसनें पाया उसे पता है की वो आनंद का अपार सागर अपने अंदर ही है |
अब उसके प्रेम में प्रार्थना आदी सब भुला दी, अब झगड़ा करने को कया है? अब सारी हाहाकार शान्त हो गई है ||

प्रणाम जी

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