Thursday, April 14, 2016


कुली दज्जाल अंधेर सरूपे, त्रिगुन को पाड़े त्रास।
सूर सिरोमन साध संग्रामें, पीछे पटक किए निरास।।

कलियुग रूपी यह शैतान अज्ञान का ही स्वरूप है, जिसने ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव को भी भयभीत कर रखा है। ज्ञान, भक्ति तथा वैराग्य के क्षेत्र में अग्रगण्य शिरोमणि महात्माओं को भी इसने मायावी युद्ध में हराकर निराश कर दिया।कलियुग से तात्पर्य उस मोहसागर से है, जिसे कोई पार नहीं कर पाता। सृष्टिकर्ता आदिनारायण भी जब इसके बन्धन में हैं तो उनके अंश से उत्पन्न होने वाले ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी का इससे भयभीत रहना स्वाभाविक ही है।
महानारायण उपनिषद् में कहा गया है कि उनके रोम-रोम में चौदह लोकों सहित असंख्यों ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव स्थित हैं।

इसी प्रकार अन्य ग्रन्थो में भी विवरण है जैसे..

देवी भागवत (9/3/7) में कहा गया है कि भले ही धूल के कणों की संख्या गिन ली जाये, लेकिन उत्पन्न होने वाले तथा लय होने वाले ब्रह्माण्डों की संख्या नहीं गिनी जा सकती । इसी प्रकार असंख्य ब्रह्माण्डों के असंख्य ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव की संख्या की भी गिनती संभव नहीं है ।

देवी भागवत (4/19/3) के कथनानुसार- ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव भी उस सच्चिदानन्द परब्रह्म के विषय में यथार्थ रूप से नहीं जानते हैं । मै ब्रह्मा हूँ, मै विष्णु हूँ, मै शिव हूँ- इस प्रकार हम लोग माया से मोहित हो रहे हैं । उस सनातन परमात्मा के विषय में हम लोग स्पष्ट रूप से नहीं जानते हैं ।

माहेश्वर तन्त्र (5/56,57) में शिव जी अपने मुखारविन्द से पार्वती से कहते हैं- इस अज्ञान के समुद्र में ब्रह्मा, आदि हम सब भी एक बुलबुले के आकार के समान हैं और उसी परब्रह्म की इच्छा रूपी वायु से बने रहते हैं । जिस प्रकार वायु के निकल जाने पर वे बुलबुले पानी के रूप में विलीन हो जाते हैं, उसी प्रकार हम लोगों के साथ ही यह ब्रह्माण्ड भी लीन हो जायेगा ।
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प्रणाम जी

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