सुप्रभात जी
प्रत्येक अंश अपने अंशी को ही स्वाभाविक रूप से चाहता है, जैसे अग्नि सदा ही ऊपर सूर्य की ओर उठती है, क्योंकि वो सूर्य का अंश है. ऐसे ही हम आत्माऐं परमात्मा के अंश हैं.
वेदों में उन परमात्मा का एक नाम 'आनंद' कहा गया है. आनंद और परमात्मा दोनों ही पर्यायवाची शब्द है. परमात्मा में आनंद है, ऐसा नहीं है. वास्तव में परमात्मा ही आनंद है, आनंद ही परमात्मा है.
उसी आनंद के अंश होने के कारण हम आनंद ही चाहते हैं, आनंद ही चाह सकते हैं. यही हमारा सहज स्वभाव है. कोटि कल्प प्रयत्न करके भी हम कभी दु ख नहीं चाह सकते.
अर्थात समस्त आत्माऐं आनंद की ही प्रेमी हैं यानि की परमात्मा की ही प्रेमी , उन्ही से ही प्रेम करने वाले. अतएव समस्त चराचर जीव आस्तिक हैं, निरंतर आस्तिक परमात्मा के आस्तिक..
www.facebook.com/kevalshudhsatye
प्रणाम जी
प्रत्येक अंश अपने अंशी को ही स्वाभाविक रूप से चाहता है, जैसे अग्नि सदा ही ऊपर सूर्य की ओर उठती है, क्योंकि वो सूर्य का अंश है. ऐसे ही हम आत्माऐं परमात्मा के अंश हैं.
वेदों में उन परमात्मा का एक नाम 'आनंद' कहा गया है. आनंद और परमात्मा दोनों ही पर्यायवाची शब्द है. परमात्मा में आनंद है, ऐसा नहीं है. वास्तव में परमात्मा ही आनंद है, आनंद ही परमात्मा है.
उसी आनंद के अंश होने के कारण हम आनंद ही चाहते हैं, आनंद ही चाह सकते हैं. यही हमारा सहज स्वभाव है. कोटि कल्प प्रयत्न करके भी हम कभी दु ख नहीं चाह सकते.
अर्थात समस्त आत्माऐं आनंद की ही प्रेमी हैं यानि की परमात्मा की ही प्रेमी , उन्ही से ही प्रेम करने वाले. अतएव समस्त चराचर जीव आस्तिक हैं, निरंतर आस्तिक परमात्मा के आस्तिक..
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