Tuesday, January 3, 2017

सुप्रभात जी

पढ़  पढ़  के  इलम  की बाते  तू ज्ञानी तो हो  गया  पर  कभी अपने  आप  को  जानने का प्रयास  नही कीया ,
तू  मंदिर मस्जित भागता फिरता हैं  कभी अपने हृदये  में  झांक के नही देखता ,
तू सोचता  हैं की शैतान बहार  हैं और रोज इसी  उलझन  में रहता  हैं पर  कभी अपने अंदर के दैूत रूपी अंधकार को दूर नही करता  जहाँ से महान शैतान  उत्पन्न होता हैं ,
तू समझता हैं की खुदा आसमान में रहता हैं पर वो तो तेरे  हृदये धाम  में हैं याने तेरे  घर में हैं जीसे तूने कभी  खोजने का प्रयास नही कीया.... तू इस बात से सदा अनंजान है की तू हर जगह सवंय (आनंद) को ही खोज रहा है, पर कभी सवंय तक आने का प्रयास नही करता...
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