सवंय का संग ही सतसंग है.. तुम सवंय ही सत्य हो आनंद हो.. इसके अलावा कोई सत्यसंग नही है..अगर बाहर सतसंग ढ़ंड़ते हो तो तुम सतसंगी नही हो..
इसी प्रकार सतगुरू भी सवंय में ही है.. अगर कहीं बाहर ढ़ंड़ते हो तो तुम सतगुरू से विमुख हो..
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