Thursday, January 5, 2017

मृत्यु कया है

*मृत्यु कया है ?*

जीव मान्यता में यह खेल देख रहा है, और मान्यता खेल रही है .. वास्तव मे मान्यता है ही नही, यह बनाई गई है, जन्म व मृत्यु भी इसी की होती है कयोंकी ध्यान से देखो तो मृत्यु और जन्म कुछ है ही नही, केवल मान्यता है..

जिस मृत्यु से तुम इतना डरते हो वो होती ही नही है..
अर्थात मृत्यु किसी की नही होती, ध्यान से देखो मरा कौन.. कयोंकी तुम चेतन हो, कभी मर नही सकते, शरीर की भी मृत्यु नही होती, कयोंकी ये भी अमने मूल में लय होता है .. मरता नही अर्थात शून्य नही होता, रहता है सदा, चाहे किसी भी आकार मे रहे..
फिर मरता कौन है?
मृत्यु किसकी है ?

मृत्यु मान्यता की है.. मां,बाप,भाई,बहन,बेटा ये मरते है.. ये क्या हैं ? ये मन्यता है , ये जो तुमने मान रखा है केवल ये मानी हुई मान्यता की मृत्यु होती है.. इसी का भय है .. झूठ का भय है..

अपने सत्य स्वरूप में आ जाओ झूठी मान्यता नही रहेगी..

श्वेताश्वतर उपनिषदमें भी यह बात स्पष्ट की है । यथा,

द्वा सुपर्णा सयुजौ सखायौ, समाने वृक्षे परिषस्वजाते ।
तयोरेकं पिप्पलं स्वादुमत्तिः अनश्ननन्यो अभिचाकषीति ।।

अर्थात् एक वृक्षमें दो पक्षी सखाभावसे रहते हैं । उनमेंसे एक उस वृक्षके फलका आस्वादन करता है तो दूसरा मात्र देखता रहता है ..

*यामें जीव दोय भाँत के, एक खेल दूजे देखनहार| पेहेचान ना होवे काहू को, आड़ी पड़ी माया मोह अहंकार||*
(कि: 30/12)
Www.facebook.com/kevalshudhsatye

No comments:

Post a Comment