Wednesday, January 9, 2019

तुम दीपक हो

जैसे घर में एक दीपक जलाया गया जाता है। उसकी लौ ऊपर की ओर उठती है। दीया भूमि का भाग है, पर लौ न मालूम किसे पाने निरंतर ऊपर की ओर भागती रहती है।

इस लौ की भांति ही मनुष्य में आनंद रूपी आत्मा भी है।

शरीर भूमि पर तृप्त है, पर मनुष्य में शरीर के अतिरिक्त भी कुछ है, जो निरंतर भूमि से ऊपर उठना चाहता है। यह चेतना ही, यह अग्नि-शिखा ही आत्मा है। यह निरंतर ऊपर उठने की उत्सुकता ही उसकी आत्मा है।

यह लौ है, इसलिए मनुष्य मनुष्य है, अन्यथा सब मिट्टी है।

यह लौ पूरी तरह जले तो जीवन में क्रांति घटित हो जाती है। यह लौ पूरी तरह दिखाई देने लगे तो मिट्टी के बीच ही मिट्टी को पार कर लिया जाता है।

मनुष्य एक दीया है। मिट्टी भी है, उसमें ज्योति भी है। मिट्टी पर ही ध्यान रहा, तो जीवन व्यर्थ हो जाता है। ज्योति पर ध्यान जाना चाहिए। ज्योति पर ध्यान जाते ही सब कुछ परिवर्तित हो जाता है, तब वह मिट्टी नहीं दीपक बन जाता है, क्योंकि तब मिट्टी में ही प्रकाश के, अनन्त के दर्शन हो जाते हैं। 

Satsangwithparveen.blogspot.com

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