सत्य है, पर हम स्वयं मूच्र्छा में है, जैसे प्रकाश हो पर आंख बंद हो और फिर स्वयं को नहीं जगाते हैं, सत्य की खोज करते हैं। आंख तो खोलते नहीं हैं और प्रकाश के विषय में नए नए विचार बनाते हैं उसका अनुसंधान करते हैं।
इस भूल में कभी मत पड़ना।
सब खोज छोड़ो और चुप हो जाओ। चित्त को चुप कर लो और सुनों। आंखें खुली कर लो और देखो। जैसे पानी की मछली मुझ से पूछे कि उसे सागर खोजना है, तो उससे मैं क्या कहूंगा? मैं उससे कहूंगा : खोज छोड़ों और देखो कि तुम सागर में ही हो। प्रत्येक सागर में है। सागर को पाना नहीं, पीना शुरू करना है।
आनंद खोजो मत उसका सेवन करें, आनंद अभी में ही है ।
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