Sunday, July 19, 2015

आडम्बर रहीत हो भक्ति

यदि तुम परमात्मा को चाहते हो छुप कर रहो, पता मत दो के हम भक्त है ।
आडम्बर और पाखण्ड मनुष्य को गिरा देता है ।
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एक राजा भगवान्‌के बड़े भक्त थे, वे गुप्त रीतिसे भगवान्‌का भजन करते थे । उनकी रानी भी बड़ी भक्त थी । बचपनसे ही वह भजनमें लगी हुई थी । इस राजाके यहाँ ब्याहकर आयी तो यहाँ भी ठाकुरजीका खूब उत्सव मनाती, ब्राह्मणोंकी सेवा, दीन-दुःखियोंकी सेवा करती; भजन-ध्यानमें, उत्सवमें लगी रहती । राजा साहब उसे मना नहीं करते । वह रानी कभी-कभी कहती कि ‘महाराज ! आप भी कभी-कभी राम-राम‒ऐसे भगवान्‌का नाम तो लिया करो ।’ वे हँस दिया करते । रानीके मनमें इस बातका बड़ा दुःख रहता कि क्या करें, और सब बड़ा अच्छा है । मेरेको सत्संग, भजन, ध्यान करते हुए मना नहीं करते; परन्तु राजा साहब स्वयं भजन नहीं करते ।

ऐसे होते-होते एक बार रानीने देखा कि राजासाहब गहरी नींदमें सोये हैं । करवट बदली तो नींदमें ही ‘राम’ नाम कह दिया । अब सुबह होते ही रानीने उत्सव मनाया । बहुत ब्राह्मणोंको निमन्त्रण दिया; बच्चोंको, कन्याओंको भोजन कराया, उत्सव मनाया । राजासाहबने पूछा‒‘आज उत्सव किसका मना रही हो ? आज तो ठाकुरजीका भी कोई दिन विशेष नहीं है ।’रानीने कहा‒‘आज हमारे बहुत ही खुशीकी बात है ।’ क्या खुशीकी बात है ? ‘महाराज ! बरसोंसे मेरे मनमें था कि आप भगवान्‌का नाम उच्चारण करें । रातमें आपके मुखसे नींदमें भगवान्‌का नाम निकला ।’ निकल गया ? ‘हाँ’ इतना कहते ही राजाके प्राण निकल गये । ‘अरे मैंने उमरभर जिसे छिपाकर रखा था, आज निकल गया तो अब क्या जीना ?’
गुप्त अकाम निरन्तर ध्यान सहित सानन्द ।
आदर जुत जपसे तुरत पावत परमानन्द ॥

ये छः बातें जिस भक्ति में होती हैं, उस भक्ति का तुरन्त और विशेष माहात्म्य होता है । परमात्मा का ध्यान गुप्त रीतिसे किया जाय, वह बढ़िया है । लोग देखें ही नहीं, पता ही न लगे‒यह बढ़िया बात है परंतु कम-से-कम दिखावटीपन तो होना ही नहीं चाहिये । इससे असली ध्यान नहीं होता । भक्तिका निरादर होता है । भक्ति के बदले मान-बड़ाई खरीदते हैं, आदर खरीदते हैं, लोगोंको अपनी तरफ खींचते हैं‒यह नाम महाराजकी बिक्री करना है । यह बिक्रीकी चीज थोड़े ही है ! भक्ति जैसा धन, बतानेके लिये है क्या ? लौकिक धन भी लोग नहीं बताते, खूब छिपाकर रखते हैं । यह तो भीतर रखनेका है, असली धन है ।

छिपके साहेब कीजे याद, खासलखास नजीकी स्वाद ।
बडी द्वा माहें छिपके ल्याए, सब गिरोहसों करे छिपाए ।।

परमात्माकी उपासना गुप्त रूपसे करनी चाहिए. श्रेष्ठ आत्माएँ इस प्रकारकी उपासनासे उनकी निकटताका आनन्द प्राप्त करतीं हैं. सद्गुरु श्रीदेवचन्द्रजीने परब्रह्म परमात्मासे जो प्रार्थना की थी उसे उन्होंने ब्रह्मात्माओंके समुदायसे भी गुप्त रखा था.

माई मेरे निरधनको धन राम ।
रामनाम मेरे हृदयमें राखूं ज्यूं लोभी राखे दाम ॥
दिन दिन सूरज सवायो उगे, घटत न एक छदाम ।
सूरदास के इतनी पूँजी, रतन मणि से नहीं काम ॥

Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी

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