Thursday, July 30, 2015

अक्षरातीत नूरजमाल , ए तरफ जाने अछर नूर ।

एक या बिना त्रैलोक को , इन तरफ की न काहू सहूर ।। (श्रीमुख वाणी- सि. २/५४)

अर्थात् एकमात्र अक्षर ब्रह्म ही पूर्णब्रह्म अक्षरातीत  के विषय में जानते हैं । उनके अतिरिक्त सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को अक्षरातीत की कोई भी जानकारी नहीं है । अतः पूर्ण ब्रह्म का विषय अति गोपनीय है तथा तारतम ज्ञान के बिना उन्हें नहीं जाना जा सकता है ।

उस तेजोमय कोश में तीन अरे (अक्षर ब्रह्म, पूर्ण ब्रह्म तथा आनन्द अंग) तीन (सत् चित् आनन्द) में प्रतिष्ठित हैं । उसमें जो परम पूज्यनीय तत्व, परमात्मस्वरूप हैं, उसका ही ब्रह्मज्ञानी लोग ज्ञान किया करते हैं । (अथर्ववेद १०/२/३२)

वह परब्रह्म सत् , चिद् , आनन्द लक्षणों वाला है, इसलिए उसे सच्चिदानन्द कहते हैं । परब्रह्म स्वयं चिदघन स्वरूप हैं, उनकी सत्ता का स्वरूप अक्षर ब्रह्म हैं तथा आनन्द का स्वरूप श्री श्यामा जी हैं । यह तीनों मिलकर सच्चिदानन्द स्वरूप कहलाते हैं । वैसे तो वह तीनों एक ही स्वरूप माने जायेंगे, परन्तु उनमें लीला रूप में भेद है । अक्षर ब्रह्म सत्ता के स्वरूप हैं जबकि अक्षरातीत अपनी आनन्द अंग श्यामा जी व आत्माओं के साथ पवित्र प्रेम व आनन्द की लीला करते हैं ।

अक्षरातीत पूर्ण ब्रह्म श्री राज जी का स्वरूप अक्षर ब्रह्म की भांति सर्वदा एकरस रहता है । उनके स्वरूप में न तो ह्रास होता है, न ही विकास । उनका स्वरूप नूरमयी (शुक्रमयी), अनन्य प्रेममयी और आनन्दमयी है ..

प्रणाम जी

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