Tuesday, July 28, 2015

यामें  प्रेम  लछन  एक  पारब्रह्म  सों ,   एक  गोपियों  ए  रस  पाया ।
तब   भवसागर   भया   गौपद   बछ ,        विहंगम   पैंडा   बताया ।। ( श्री मुख वाणी- कि. ३२/९ )

प्राणवल्लभ अक्षरातीत की अनन्य प्रेम लक्षणा भक्ति का रसमयी मार्ग केवल गोपियों ने ही पाया , जिससे उनके लिए यह अथाह भवसागर गाय के बछड़े के खुर से बने हुए गड्ढे की तरह छोटा हो गया । तब उन्होंने बड़ी सरलता से इसे वैसे ही पार कर लिया जैसे कोई पक्षी एक ही उड़ान में अपनी मंजिल तक पहुँच जाता है ।
ब्रह्मज्ञान तारतम से ही इस मार्ग का पता चल सका है । इस मार्ग पर चलने के लिए तीन बातों की आवश्यकता है- तारतम ज्ञान , परब्रह्म के प्रति अटूट निष्ठा (ईमान) व प्रेम । तारतम ज्ञान का बोध हुए बिना न तो क्षर, अक्षर व अक्षरातीत के सभी रहस्यों का पता चल सकता है , न ही दृढ़ निष्ठा जागृत हो सकती है ..

प्रणाम जी

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