Wednesday, July 20, 2016


*मन का कार्य है आपकी सवंय की स्थिती से उत्पन्न विषय में निरंतर वृद्धि करना..*
उदाहरण-
जैसे आपके सवंय कि स्थिती वैज्ञानिक की है तो मन आपके इसी स्थिती के अनुसार आपके विषय में निरंतर वृद्धि करता रहता है, कहने का भाव है कि जहा आपकी संवय कि स्थिती होती है मन आपको उसी स्थिती के अनुसार सहायता व विषय वृद्धि करता है..
कहने का अर्थ है कि आप जहां होंगे मन वहीं होगा .. अगर आप किसी संसारी प्रेम में हो चाहे वो कोई विषय वस्तु हो या स्त्री पुरूष का प्रेम हो अर्थात आप अपनी स्थिती किसी भी प्रेम में रखें, तो आपका मन भी निरंतर वही रहेगा.. मनको विषय आप दे रहे हैं .. ध्यान दो मनको विषय आप दे रहे हैं और उलाहना मनको देते हो कि मन परमात्मा में नही लगता.. कैसे लगेगा मन वही होगा जहा आप होगे, बडे चालाक हो खुद माया से जुडे हो और मन परमात्मा जे जोडना चाहते हो ..

बहोत ही simple है खुदको परमात्मा से जोडलो मनको वही आना पडेगा और आपके परमात्मा विषय में खुद वृद्धि करता रहेगा निरंतर, ये नियम है,
इसलिय कभी भी परमात्मा में मन लगाने का व्यर्थ प्रयास मत करना, नही लगेगा, जीवन लगा दो फिर भी नही लगेगा...

*कयोंकि मन का कार्य है आपकी सवंय की स्थिती से उत्पन्न विषय में निरंतर वृद्धि करना..*

सवंय कि स्थिती परमात्मा में करलो मन लगाना नही पडेगा लगजायेगा, अपने आप...

पर ध्यान रहे विषय परमात्मा ही हो अर्थात अदूैत, जोकी 99% जीवो का नही होता 1% जीव होते हैं जो अदूैत में रहते है अन्यथा सभी दूैत में है .. और जो 99% दूैत में हैं तो उनका मन भी दूैत के विषय मे निरंतर वृद्धि करता रहता है इसलिय अदूैत उनके लिय कठिन हो जाता है...
इसलिय अदूैत को समझना परम आव्यषक है..
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प्रणाम जी

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