सुपरभात जी
*कलयुग*
www.facebook.com/kevalshudhsatye
कलयुग को इसलिय महत्वपूर्ण माना गया है कयोंकी इसी कलयुग में ब्रह्म ग्यान प्रकट हुवा है ..
बुद्ध स्तोत्र
"" कलियुग ""के प्रथम चरण में वह सच्चिदानन्द परब्रह्म अचानक ही ज्ञान रूप से प्रकट होंगे, जिनके ज्ञान को प्राप्त करके तुम स्वयं भी ज्ञानमयी हो जाना ।।५।।
(हरिवंश पुराण भविष्य पर्व अध्याय ४ )
इसमें कहा गया है कि कभी न होने वाले वे ब्रह्ममुनि ""कलियुग"" में अवतरित होंगे, जो एकमात्र प्रधान पुरुष (अक्षरातीत) के ही आश्रय में रहने वाले होंगे और उनको छोड़कर अन्य किसी की भी उपासना नहीं करेंगे । उनका ग्यान अलौकिक होगा
*कलयुग में सतगुरू पचान होनी है ..हम अनंत जन्मों से निगुरे है , कारण, गुरू का ना मिलना, कलयुग में ही सतगुरू से मिलन होना है, जिसे पाकर तुम सवंय सतगुरूरसमय हो जाओगे*
कलियुग केवल नाम अधारा ,
सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा।
कलयुग केवल नाम(पहचान) के आधार पर पार हो जाता है ..याहां नाम का अर्थ केवल पहचान है, नाम हमारी पहचान का सुचक है.. *निनाम सोई जाहेर हुआ* का भाव भी पहचान से ग्रहण करोगे तो नाम का झगडा ही नही होगा..
*सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा।*
सुमिरन यवंय का विश्राम है. सवंय का परमात्मा विषय में विश्राम ही सुमिरन है, समाधि मध्य में है और सुमिरन शिखर है. सुमिरन अर्थात परमात्मा के प्रति जागना या उसमें स्थित होना..
*सुरति क्या है ?*
सांसों के साथ आत्मा अथवा परमात्मा के प्रति होश को सुरति कहते हैं. सूफी इसे फ़िक्र कहते हैं. इसमें सहज ही निरंतर निर्विचार स्थिती की अवस्था बनी रहती है. सुरति होश से ज्यादा प्रभावशाली है.
*सुमिरन क्या है ?*
जब सुरति में परमात्मा जोड़ दिया जाता है, तो उसे सुमिरन कहते हैं. सूफी इसे जिक्र कहते हैं. यह सर्वाधिक प्रभावशाली है. प्रभाव की दृष्टि से सुमिरन कों 100 प्रतिशत अंक दिया जा सकता है,
”“सुमिरन चार प्रकार से किया जाता है – (1) कंठ से, (2) मन से, (3) ह्रदय से एवं (4) साक्षी होकर.
1- कंठ से सुमिरन का अर्थ है बोलकर सुमिरन, बोलकर प्रभु की याद, कीर्तन. ज्यादातर लोग इसे ही सुमिरन कहते है या समझते है..
2- मन से सुमिरन का अर्थ है प्रभु के नाम और रूप का मनन करते हुए सुमिरन.
3- ह्रदय से सुमिरन का अर्थ है प्रेम से भरकर परमात्मा की याद. ये तीनों प्रकार के सुमिरन संत वाणी में वर्णित हैं.
*साक्षी सुमिरन का अर्थ है आत्मस्थिती को परमात्मा मे स्थित कर लेना या हो जाना, यही सत्य सुमिरन है. यह सर्वाधिक प्रभावशाली है.”*
इसका सार जो आप ग्रहण कर रहें है यही ब्रह्म ग्यान है, ये कलयुग में ही होना था इसलिय कलयुग महान कहा गया है..
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी
*कलयुग*
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कलयुग को इसलिय महत्वपूर्ण माना गया है कयोंकी इसी कलयुग में ब्रह्म ग्यान प्रकट हुवा है ..
बुद्ध स्तोत्र
"" कलियुग ""के प्रथम चरण में वह सच्चिदानन्द परब्रह्म अचानक ही ज्ञान रूप से प्रकट होंगे, जिनके ज्ञान को प्राप्त करके तुम स्वयं भी ज्ञानमयी हो जाना ।।५।।
(हरिवंश पुराण भविष्य पर्व अध्याय ४ )
इसमें कहा गया है कि कभी न होने वाले वे ब्रह्ममुनि ""कलियुग"" में अवतरित होंगे, जो एकमात्र प्रधान पुरुष (अक्षरातीत) के ही आश्रय में रहने वाले होंगे और उनको छोड़कर अन्य किसी की भी उपासना नहीं करेंगे । उनका ग्यान अलौकिक होगा
*कलयुग में सतगुरू पचान होनी है ..हम अनंत जन्मों से निगुरे है , कारण, गुरू का ना मिलना, कलयुग में ही सतगुरू से मिलन होना है, जिसे पाकर तुम सवंय सतगुरूरसमय हो जाओगे*
कलियुग केवल नाम अधारा ,
सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा।
कलयुग केवल नाम(पहचान) के आधार पर पार हो जाता है ..याहां नाम का अर्थ केवल पहचान है, नाम हमारी पहचान का सुचक है.. *निनाम सोई जाहेर हुआ* का भाव भी पहचान से ग्रहण करोगे तो नाम का झगडा ही नही होगा..
*सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा।*
सुमिरन यवंय का विश्राम है. सवंय का परमात्मा विषय में विश्राम ही सुमिरन है, समाधि मध्य में है और सुमिरन शिखर है. सुमिरन अर्थात परमात्मा के प्रति जागना या उसमें स्थित होना..
*सुरति क्या है ?*
सांसों के साथ आत्मा अथवा परमात्मा के प्रति होश को सुरति कहते हैं. सूफी इसे फ़िक्र कहते हैं. इसमें सहज ही निरंतर निर्विचार स्थिती की अवस्था बनी रहती है. सुरति होश से ज्यादा प्रभावशाली है.
*सुमिरन क्या है ?*
जब सुरति में परमात्मा जोड़ दिया जाता है, तो उसे सुमिरन कहते हैं. सूफी इसे जिक्र कहते हैं. यह सर्वाधिक प्रभावशाली है. प्रभाव की दृष्टि से सुमिरन कों 100 प्रतिशत अंक दिया जा सकता है,
”“सुमिरन चार प्रकार से किया जाता है – (1) कंठ से, (2) मन से, (3) ह्रदय से एवं (4) साक्षी होकर.
1- कंठ से सुमिरन का अर्थ है बोलकर सुमिरन, बोलकर प्रभु की याद, कीर्तन. ज्यादातर लोग इसे ही सुमिरन कहते है या समझते है..
2- मन से सुमिरन का अर्थ है प्रभु के नाम और रूप का मनन करते हुए सुमिरन.
3- ह्रदय से सुमिरन का अर्थ है प्रेम से भरकर परमात्मा की याद. ये तीनों प्रकार के सुमिरन संत वाणी में वर्णित हैं.
*साक्षी सुमिरन का अर्थ है आत्मस्थिती को परमात्मा मे स्थित कर लेना या हो जाना, यही सत्य सुमिरन है. यह सर्वाधिक प्रभावशाली है.”*
इसका सार जो आप ग्रहण कर रहें है यही ब्रह्म ग्यान है, ये कलयुग में ही होना था इसलिय कलयुग महान कहा गया है..
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प्रणाम जी
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