Saturday, April 1, 2017

सुप्रभात जी

पुस्तकीय ज्ञान दूसरों का ज्ञान है तुम्हारा अपना नहीं . ज्ञान तो स्वयं की अनुभूति का नाम है. देह मिली है जिसका अर्थ है प्रारब्ध और वासनाओं का व्यापार अभी शेष है . देह के सभी आवरण केवल भ्रांति हैं और भ्रांति का नाश केवल बोध से होता है . जो कुछ भी परिवर्तन शील है केवल भ्रांति हैं जिसने आत्मा को जान लिया, उसका संसार स्वयं छूट जाता है ,संसार छोड़ने से आत्म ज्ञान नहीं होता है, संन्यास लेना या देना जैसा कुछ भी नहीं होता हैं, यह विरक्ति और त्याग की ,मन की अवस्थाएँ हैं , अतः सच्चा सन्यास मानसिक व शाररिक  कार्य नहीं अपितु आत्म अनुभूति है।
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प्रणाम जी

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