Sunday, April 23, 2017

अष्टावक्र कहते हैं -

तुम्हारा किसी से भी संयोग नहीं है, तुम शुद्ध हो, तुम क्या त्यागना चाहते हो, इस झूठे (अवास्तविक को अपने से अलग मानकर) सम्मिलन को समाप्त कर के ब्रह्म से योग (एकरूपता) का बोध करो॥

जिस प्रकार समुद्र से बुलबुले उत्पन्न होते हैं, उसी प्रकार विश्व एक आत्मा से ही उत्पन्न होता है। यह जानकर ब्रह्म से योग (एकरूपता) का बोध करो॥

यद्यपि यह विश्व आँखों से दिखाई देता है परन्तु अवास्तविक है। विशुद्ध तुम में इस विश्व का अस्तित्व उसी प्रकार नहीं है जिस प्रकार कल्पित सर्प का रस्सी में। यह जानकर ब्रह्म से योग (एकरूपता) का बोध करो ॥

स्वयं को सुख और दुःख से अलग, पूर्ण, आशा और निराशा में पृथक, जीवन और मृत्यु से अलग, सत्य जानकर ब्रह्म से योग (एकरूपता) का बोध करो ॥
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