सवंय का संग ही सतसंग है.. तुम सवंय ही सत्य हो आनंद हो.. इसके अलावा कोई सत्यसंग नही है..अगर स्वंय को नही पहचाना तो कही भी भ्रमण करलो झूठ का झूठ ही रहेगा, और सवंय को जान लिया तो बस फिर निरंतर सत्य ही है.. फिर सतसंग के विकार भाव को भी पार करलोगे..
सतसंग को विकार भाव इसलिय काहा है कयोंकी इसमें दो का भाव है सत्य और संग, अर्थात सत्य का संग करने वाला, अर्थात *अहं* | अपने को सत्य से अलग मान्ते हो, यही अहं भाव सतसंग मे विकार रूप में उपस्थित रहता है.. इसलिय सवंय की शुद्ध पहचान ही सतसंग है..आनंद ही सत्य है ,आप ही आनंद हो..बाहर तो सब झूठ है..
Www.facebook.com/kevalshudhsatye
सतसंग को विकार भाव इसलिय काहा है कयोंकी इसमें दो का भाव है सत्य और संग, अर्थात सत्य का संग करने वाला, अर्थात *अहं* | अपने को सत्य से अलग मान्ते हो, यही अहं भाव सतसंग मे विकार रूप में उपस्थित रहता है.. इसलिय सवंय की शुद्ध पहचान ही सतसंग है..आनंद ही सत्य है ,आप ही आनंद हो..बाहर तो सब झूठ है..
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