जैसे धूप में छाया नहीं, जैसे सूर्य में अंधकार नहीं, जैसे अग्नि में बरफ नहीं, और जैसे अणु में सुमेरु नहीं होता, तैसे ही आत्मामें जगत् नहीं होता । सत्यरूप आत्मा में असत्यरूप जगत् कैसे हो? आत्मा कारण से भी मुक्त है..कारण दो प्रकार का होता है-एक समवाय कारण और दूसरा निमित्तकारण, आत्मा दोनों कारणों से रहित है । निमित्तकारण तब होता है जब कार्य से कर्त्ता भिन्न हो, पर आत्मा तो अद्वैत है, उसके निकट दूसरी वस्तु नहीं, वह कर्त्ता कैसे हो और किसका हो, वह तो मन और इन्द्रियों से रहित निराकार अविकृ तरूप है । और समवाय कारण भी परिणाम से होता है । जैसे वट बीज परिणाम से वृक्ष होता है, पर आत्मा तो अखंड़ है , परिणाम को कदाचित् नहीं प्राप्त होता तो समवाय कारण कैसे हो? जायते, अस्ति, वर्धते, विपरिणमते, क्षियते, नश्यति, इनषट् विकारों से रहित निर्विकार आत्मा जगत् का कारण कैसे हो? इससे यह जगत् अकारणरूप भ्रान्ति से दिखता है ।
जैसे आकाश में नीलता,सीप में रूपा और निद्रादोष से स्वप्न दिखते हैं वैसे ही यह जगत् भ्रान्ति से दिखाइ देता है । और जब अपने सवंय के स्वरूप में जागे तब जगत्भ्रम मिट जाता है । इससे कारणकार्य भ्रम को त्यागकर तुम अपने स्वरूप में स्थित हो । दुर्बोध और मान्यता से संकल्प रचना हुई है उसको त्याग करो और आदि, मध्य और अन्त से रहित जिसकी सत्ता है उसी आनंदस्वरूप में स्थित हो तब जगत्भ्रम मिट जायेगा ।
Www.facebook.com/kevalshudhsatye
प्रणाम जी
जैसे आकाश में नीलता,सीप में रूपा और निद्रादोष से स्वप्न दिखते हैं वैसे ही यह जगत् भ्रान्ति से दिखाइ देता है । और जब अपने सवंय के स्वरूप में जागे तब जगत्भ्रम मिट जाता है । इससे कारणकार्य भ्रम को त्यागकर तुम अपने स्वरूप में स्थित हो । दुर्बोध और मान्यता से संकल्प रचना हुई है उसको त्याग करो और आदि, मध्य और अन्त से रहित जिसकी सत्ता है उसी आनंदस्वरूप में स्थित हो तब जगत्भ्रम मिट जायेगा ।
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