सुप्रभात जी
लोहेके टुकड़ेको चुम्बकके साथ एक ही दिशामें घसने(रगड़ने) लगेंगे तो वह भी चुम्बकीय गुण प्राप्त करता है । इस प्रक्रियामें चुम्बकसे लोहेके टुकड़ेमें चुम्बकीय शक्ति नहीं जाती है अपितु चुम्बकके साथ एक दिशामें घर्षण होने पर लोहेके टुकड़ेके अणु-परमाणुओंको एक दिशा प्राप्त होती हैं । शक्ति तो उन्हीं अणुओंमें है किन्तु वे एक दिशामें न होनेसे संगठित नहीं हो पाते हैं । चुम्बकके संसर्गसे उन्हें एकदिशा प्राप्त होती है जिससे उन अणुओंकी शक्ति प्रकट होती है । इस प्रकार एक सामान्य लोहा चुम्बक बन जाता है ।
इसी प्रकार मनुष्यके अन्तःकरणकी वृत्तियाँ, जो चारों दिशाओंमें फिरती रहती हैं, साधनाके द्वारा एक सही दिशा प्राप्त करती हैं । उससे अपार शक्ति प्रकट होती है उसीको लोगोंने सिद्धि कहा है । ऐसी साधना आत्मा के मार्गदर्शनमें हो तो व्यक्तिके अन्तःकरणकी वृत्तियोंको आनंद या परमात्माकी दिशा प्राप्त होती है जिससे व्यक्ति आत्म बोध प्राप्त कर सकता है । इसीको सही दिशा की साधना कहा है ।
इसी साधनाके द्वारा आत्माकी अनुभूति होती है, परमात्माकी अनुभूति होती है और परमधामकी अनुभूति होती है । आत्मा परमात्मा व प्रेम एक ही हैं इसलिए इस साधनाको प्रेम साधना भी कहा है ।
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी
लोहेके टुकड़ेको चुम्बकके साथ एक ही दिशामें घसने(रगड़ने) लगेंगे तो वह भी चुम्बकीय गुण प्राप्त करता है । इस प्रक्रियामें चुम्बकसे लोहेके टुकड़ेमें चुम्बकीय शक्ति नहीं जाती है अपितु चुम्बकके साथ एक दिशामें घर्षण होने पर लोहेके टुकड़ेके अणु-परमाणुओंको एक दिशा प्राप्त होती हैं । शक्ति तो उन्हीं अणुओंमें है किन्तु वे एक दिशामें न होनेसे संगठित नहीं हो पाते हैं । चुम्बकके संसर्गसे उन्हें एकदिशा प्राप्त होती है जिससे उन अणुओंकी शक्ति प्रकट होती है । इस प्रकार एक सामान्य लोहा चुम्बक बन जाता है ।
इसी प्रकार मनुष्यके अन्तःकरणकी वृत्तियाँ, जो चारों दिशाओंमें फिरती रहती हैं, साधनाके द्वारा एक सही दिशा प्राप्त करती हैं । उससे अपार शक्ति प्रकट होती है उसीको लोगोंने सिद्धि कहा है । ऐसी साधना आत्मा के मार्गदर्शनमें हो तो व्यक्तिके अन्तःकरणकी वृत्तियोंको आनंद या परमात्माकी दिशा प्राप्त होती है जिससे व्यक्ति आत्म बोध प्राप्त कर सकता है । इसीको सही दिशा की साधना कहा है ।
इसी साधनाके द्वारा आत्माकी अनुभूति होती है, परमात्माकी अनुभूति होती है और परमधामकी अनुभूति होती है । आत्मा परमात्मा व प्रेम एक ही हैं इसलिए इस साधनाको प्रेम साधना भी कहा है ।
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