सत्य कोई वस्तु नहीं है, जिसे पाना है। वह वासना का कोई विषय नहीं है। इसलिए उसकी ओर प्रवृत्ति नहीं हो सकती है। सत्य तो तब है, जब कोई प्रवृत्ति नहीं होती। तब जो होता है, उसका नाम सत्य है। इससे सत्य को पाना नहीं है, असल में पाना ओर छोड़ना से परे सत्य है ।
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