धंन धंन धनी के वस्तर भूषन, धंन धंन आतम से न छोडूं एक खिन ।
धंन धंन सखी मैं सजे सिनगार, धंन धंन धनिएं मोकों करी अंगीकार ।।
परमात्मा के वस्त्राभूषण धन्य हैं, जिनकी शोभाका आनन्द लेनेके एक क्षणको भी मैं भूल नहीं सकती. हे सखी ! प्रियतम परमात्मा को प्रसन्न करनेवाले मेरे शील, सन्तोष आदि शृङ्गार भी धन्य हैं और वह क्षण भी धन्य है, जब परमात्मा ने मुझे स्वीकारा है...
प्रणाम जी
धंन धंन सखी मैं सजे सिनगार, धंन धंन धनिएं मोकों करी अंगीकार ।।
परमात्मा के वस्त्राभूषण धन्य हैं, जिनकी शोभाका आनन्द लेनेके एक क्षणको भी मैं भूल नहीं सकती. हे सखी ! प्रियतम परमात्मा को प्रसन्न करनेवाले मेरे शील, सन्तोष आदि शृङ्गार भी धन्य हैं और वह क्षण भी धन्य है, जब परमात्मा ने मुझे स्वीकारा है...
प्रणाम जी
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