Wednesday, August 26, 2015

हे पापी जीव ! तूं अब तक माया की नींद में क्यों सोता रहा है। इस प्रकार तूंने तो प्रमादवश बहुत सा समय व्यर्थ में ही खो दिया है। देखते-देखते तुम्हारे शरीर की आयु भी क्षीण होने लगी है। किन्तु ! तूं अभी भी सावचेत क्यों नहीं हो रहा है ? 

No comments:

Post a Comment