सुप्रभात जी
औरनाल
हमे संसार में दो तरह की औरनाल मिलती है एक स्थूल और एक शुक्ष्म सथूल औरनाल से संसार के सभी जीव ग्रभ मेें अपनी मां के साथ जुड़े होते है व परारम्भिक संसकार वहीं से प्राप्त करते हैं जैसे अभिमन्यु ने मां के गर्भ में ही व्युह रचना का ग्यान प्राप्त कर लिया था ऐसे और भी कयी उदाहरण है..एक और उदाहरण की हर जीव अपनी मां के गर्भ से ही आहार के संसकार सीख के आता है जैसे हम पैदा होते ही बिना किसी के सिखाये मां का दूध पिना सीख लेते है और ऐसा पृथ्वी का हर प्राणी करता है ये सब स्थूल औरनाल के माध्यम से हमें मां के पेट में ही मिल जाता है जब तक स्थूल ओरनाल मां से जुडी रहती है हमे उनसे आहार और विचार दोनो प्राप्त होते है..
और एक होती है शुक्ष्म ओरनाल ये बहोत शक्तिशाली होती है इसे मन भी कह देते है व अंतःकरण भी इसका एक सिरा हमसे जुडा होता है व बाहर इसके सिरे अनेक होते है ..जिस से भी इसका बाहर वाला सिरा जुड जाता है हमें उसी वस्तु से सुख दुख आदी मिलना प्रारम्भ हो जाता है चाहे वो परिवार हो संसार मे किसी से प्रेम हो या कोइ जड़ पदार्थ हो ..अब करना कया है ??
करना ये है की हमे अपनी शुक्ष्म ओरनाल जिस से भी जुडी है उस से हटानी नही है बल्कि उसका एक नया सिरा परमात्मा विषय से जोड़ देना है व उस से धिरे धिरे ज्यादा रस पराप्त करने का प्रयास व अभ्यास करना है इसका लाभ ये होगा की हमारी ओरनाल के अन्य सिरे जो संसार से जुडे हैं वो अपने आप कमजोर होजायेन्गे जैसे हमारे दो हाथ होते है सिधा और उल्टा जो सिधे हाथ से ज्यादा कार्य करते है उनका उल्टा कमजोर हैता है ओर उल्टे हाथ वालो का सीधा ..बस अपना परमात्मा विषय का जुडाव कभी कम न होने दें व उससे ज्यादा रस ग्रहण करने का निरन्तर अभ्यास करें संसार के बन्ध अपनेआप ढिले पड जाऐंगे ..
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी
औरनाल
हमे संसार में दो तरह की औरनाल मिलती है एक स्थूल और एक शुक्ष्म सथूल औरनाल से संसार के सभी जीव ग्रभ मेें अपनी मां के साथ जुड़े होते है व परारम्भिक संसकार वहीं से प्राप्त करते हैं जैसे अभिमन्यु ने मां के गर्भ में ही व्युह रचना का ग्यान प्राप्त कर लिया था ऐसे और भी कयी उदाहरण है..एक और उदाहरण की हर जीव अपनी मां के गर्भ से ही आहार के संसकार सीख के आता है जैसे हम पैदा होते ही बिना किसी के सिखाये मां का दूध पिना सीख लेते है और ऐसा पृथ्वी का हर प्राणी करता है ये सब स्थूल औरनाल के माध्यम से हमें मां के पेट में ही मिल जाता है जब तक स्थूल ओरनाल मां से जुडी रहती है हमे उनसे आहार और विचार दोनो प्राप्त होते है..
और एक होती है शुक्ष्म ओरनाल ये बहोत शक्तिशाली होती है इसे मन भी कह देते है व अंतःकरण भी इसका एक सिरा हमसे जुडा होता है व बाहर इसके सिरे अनेक होते है ..जिस से भी इसका बाहर वाला सिरा जुड जाता है हमें उसी वस्तु से सुख दुख आदी मिलना प्रारम्भ हो जाता है चाहे वो परिवार हो संसार मे किसी से प्रेम हो या कोइ जड़ पदार्थ हो ..अब करना कया है ??
करना ये है की हमे अपनी शुक्ष्म ओरनाल जिस से भी जुडी है उस से हटानी नही है बल्कि उसका एक नया सिरा परमात्मा विषय से जोड़ देना है व उस से धिरे धिरे ज्यादा रस पराप्त करने का प्रयास व अभ्यास करना है इसका लाभ ये होगा की हमारी ओरनाल के अन्य सिरे जो संसार से जुडे हैं वो अपने आप कमजोर होजायेन्गे जैसे हमारे दो हाथ होते है सिधा और उल्टा जो सिधे हाथ से ज्यादा कार्य करते है उनका उल्टा कमजोर हैता है ओर उल्टे हाथ वालो का सीधा ..बस अपना परमात्मा विषय का जुडाव कभी कम न होने दें व उससे ज्यादा रस ग्रहण करने का निरन्तर अभ्यास करें संसार के बन्ध अपनेआप ढिले पड जाऐंगे ..
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