Tuesday, February 23, 2016

कहा भयो जो मुखथे कह्यो , जब लग चोट न निकसी फूट |
प्रेम बान तो ऐसे लगत हैं , अंग हॉट है टूक टूक ||

परमात्मा के विषये में मुख से कहने से कुछ नही होगा . एक धारणा बन गयी है की परमात्मा का गुणगान करने से भाव सागर से पार हो जाते है इस विषये में पुछा जाये तो उदाहरण संतो आदि के देने लगते है पर उन संतो की मनोदशा क्या रही होगी इस विषये में जानते ही नही हैं केवल जो देख सुन रखा है उसी को सत्ये मान कर बस चले जा रहे है .
कई बार देखने में आता है की बड़ी बड़ी सभाओ में लोग परमात्मा का गुणगान करके लोगो को संगीत के मध्येम से मंत्र मुग्ध कर  देते हैं और लोग समझते है की वे परमात्मा का गुणगान करके सत्ये मार्ग पर चल रहे हैं और मृत्यु के वक्त उन्हें लेने कोई विशेष विमान आयेगा घोर अंधकार चल रहा है सत्ये के नाम पर ,परन्तु सत्ये तो ये है की परमात्मा के विषये में केवल मुख से कहने पर कुछ नही होगा . जब तक सत्येकी चोट जीव के हृदये पर नही लगेगी तब तक उसके हृदये में सत्ये ज्ञान रूपी अंकुर नही फूट पायेगा और परमात्मा से प्रेम नही हो पायेगा , प्रेम का अर्थ मै और तू नही है परमात्मा सेप्रेम तो वह  स्थिति है जहाँ मै और तू नही रह जाता , मै और तू से आगे कही गहराई में जाके भावों का ऐसा आवरण बन जाता है जिसमे जीव के आंसू भी नही निकलते ,जब ये
परमात्मा के प्रेम के बाण लगते है तो जीव उस सत्ये के सागर में इस कदर डूब जाता है की उसके खुद के अंग इस सत्ये में टुकड़े टुकड़े होकर बहने लगते हैं ये भाव शब्दातीत होते हैं इसलिए परमातम के विषये में केवल कहने मात्र से या उनका गुणगान करने मात्र से कुछ नही होगा अपितु उनके सत्ये प्रेम के मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ना होगा ...

प्रणाम जी

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