Sunday, February 7, 2016

आपोपूं ओलखावी मारा वाला , दरपण दाखो छो प्राणनाथ |
दरपणनूं सू काम पडे, ज्यारे पेहेरयूं ते कंकण हाथ ||
एक जागृत आत्मा परमात्मा से कहती है की हे मेरे परमात्मा आप अपनी पहचान मुझसे अब केसे छिपा सकते हो जब आपने ही मुझे जागृत किया है,जब मै जागृत नही थी तो आपने मुझे अपने अनेक रूपों में उलझ के रखा उस वक्त तो मै सतगुरु के आकार को ही सेवती थी कभी सतगुरु तत्व को नही समझ पाई और जब होश आया तो मुझे अपने आप पे बोहोत खेद हुआ और में विरह में तड़फने लगी , खैर अब आप मुझे और ज्यादा अपने रूपों में नही उलझा सकते अब आपने मुझे अपने सत्ये रूप की पहचान करवा दी है जो की उन सभी रूपों से भिन्न है जिनमे आपने मुझे आज तक उलझा के रखा था ,अब मेरे लिए लिए आपके उन रूपों में उलझना वैसा ही ओगा की जैसे में अपने हाथ में पडे कंगन को प्रत्येक्ष पा कर भी उसको दरपन में ही देखती रहूँ ....

प्रणाम जी 

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