Monday, May 30, 2016

हे सत्यमार्गीयों ये जीवन जल की उतुंग तरंगों के समान चंचल है । यौवन का सौन्दर्य भी कुछ ही दिनों का मेहमान है । धन-सम्पत्ति हवाई महल के समान है । सुख-भोग वर्षाकालीन विद्युत की चमक के समान क्षण भर की झलक मात्र है । प्रेमिकाओं का आलिंगन भी स्थायी नहीं है । अतः संसार के भय रूपी सागर से पार होने के लिए एकमात्र सच्चिदानन्द परब्रह्म में ही ध्यान लगाओ । ब्रह्म रूपी आनन्द का अनुभव करने वाला मनुष्य ब्रह्मा और इन्द्र आदि देवगणों को भी तिनके के समान तुच्छ समझता है । उस परमानन्द के समक्ष उसे तीनो लोकों का राज्य भी फीका प्रतीत होता है । वास्तविक और विशुद्ध आनन्द तो उसी में है । वह ब्रह्मानन्द तो निरन्तर बढ़ता ही जाता है । उसको छोड़कर और सभी सुख तो क्षणिक ही हैं । अतः सभी को उसी सच्चिदानन्द परब्रह्म में मन लगाना चाहिए ।यही सत्य मार्ग है...
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प्रवीन का सादर प्रणाम जी

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