Saturday, August 6, 2016

ग्यान और अग्यान ..

कभी भूलकर भी मत कहना की इस या उस संत ने बृह्म को प्राप्त किया है. बृह्म को प्राप्त वो कर सकता है जो बृह्म से बडा हो , जो प्राप्त हो सके वो बृह्म नही है. बृह्म तो सदा से ,अनादी काल से तुम में ही है.. फिर कया प्राप्त करना चाहते हो . कया ये घोर अग्यान नही है कि तुम उसे प्राप्त करना चाहते हो जो तुम में ही है.. बस तुम उसके तुममें होने के बोध में नही हो .. वो तुममें है सदा से ,निरंतर , इस बोध में बोधित रहना ही ग्यान है, योग है, प्रेम है, अदूैत भाव है, शुद्ध अन्यता है, अखंड आनंद है, ..इसी बोध के बिषय में वेद कहता है..

"" प्रकृति के अन्धकार से सर्वथा परे सूर्य के समान प्रकाशमान स्वरूप वाले परमात्मा को मै जानता हूँ , जिसको जाने बिना मृत्यु से छुटकारा पाने का अन्य कोई भी उपाय नहीं है (यजुर्वेद ३१/१८) """

अर्थात उसे पाना नही है वो तुममें है ये जान्ना है..पाया हूआ है सदा से ,बस उस पाई हुई स्थिती को जानलो बस मिल गया आनंद, वेद भी बार बार यही कह रहा है..की

""उस धीर, अजर, अमर, नित्य तरुण परब्रह्म को ही जानकर विद्वान पुरुष मृत्यु से नहीं डरता है (अथर्ववेद १०/८/४४ )""
*अर्थात पाना नही है, वो तुममें ही है ये जान्ना है..*
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प्रणाम जी

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