परमात्मा का गुणगान...???
बचपन से सुन्ता आया हूं कि परमात्मा का गुणगान करने से परमात्मा खुश होते हैं..
पर परमात्मा गिणातीत हैं अर्थात परमात्मा तक गुण नही पहुंच सकते फिर वो गुणगान करने से कैसै खुश होंगे..
सबसे अहम बात की परमात्मा को खुश करना पडे कया ऐसा हो सकता है..?? अर्थात परमात्मा तो सवंय आनंद है तो कया आनंद को भी खुश करना पडता है.?? नही ..
अनादि काल से परमात्मा प्राप्ति के साधन सुन्ते आये हैं और उनपर चले भी हैं पर परिणाम शून्य कयोंकि केवल ऊपरी साधन अपनाये हैं कभी मूल पर ध्यान नही गया ना ही किसी ने बताया .. अगर बतााया भी तो निरंतर संगत नही हो पाने के कारण विषय स्पष्ट नही हो पाया..
तो स्पष्ट है कि परमात्मा का गुणगान या अन्य सुने हुये साधन (नाम जाप,रूप ध्यान, पारायण, परिकरमा, गुरू के शरीर का ध्यान..आदी अन्य साधन जो अबतक सुने है)उसको पाने का माध्यम नही है , कुछ और है , तो वो कया है??
केवल तीन विषय ग्रहण करने पर हमारे लिय परमात्मा का साक्षातकार सुगम हो जाता है वो है..
1.मन से परमात्मा नही मिलेंगे
2.कर्ता-भोक्ता
3.प्रेम कया है..
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प्रणाम जी
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