मंदिर के द्वार को उसका द्वार मत समझ लेना, क्योंकि मंदिर के द्वार में तो अहं, वासना ( इच्छाऐं )सहित आप जा सकते हैं।
उसका द्वार तो आपके ही हृदय में है। और उस हृदय पर ये अहं ओर दूैतवादी इच्छाओं की ही दीवार है। वह दीवार हट जाए, तो द्वार खुल जाए..
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