Sunday, May 14, 2017

होना सत्ता है, *है* परमात्मा है..

उस है का विस्तार और लय को होना कहा गया है कयोंकी ये होता है. यही माया है..

जो है सदा से सदा तक, जीसमें होना नही है , वह तो *है* ही ,अनंत से वही शब्द में परमात्मा है..

जो *है* को जान्ता है वह होने में है को देखलेता है..
जो *है* को नही जान्ता वह होने में भ्रमित रहता है..
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