Monday, May 29, 2017

सुप्रभात जी

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हे आनंद के अभीप्सु ! परम सत्य के पुजारी! उठ! अदूैत में में जाग। उस अमृतमय आनंद को हृदयंगम कर। तुझे सत्य पथ प्राप्त होगा। तू आत्म-चेतना में उठेगा। आत्म-सत्य में जागेगा। आत्म-उपलब्धि रूपी पीयूष-सिंधु पर तेरा अधिकार होगा।
तू शरीर रूपी इस पिंजरे से सोचने विचारने वाला प्राणी मात्र नही है। तेरे इस मृण्मय शरीर में अमर आत्मा का, एक दिव्य पुरूष का निवास है। वह तेरे अस्तित्व का सच्चा स्वामी  है। उस सवंय को ढूंढ। आंतरिक खोज को जीवन लक्ष्य के रूप में चुन। अगर तू अपनी खोज में सच्चा रहेगा, अगर तेरी अभीप्सा में शारिरीक चेसटा की अपेक्षा आत्मिक चेस्टा है तो तू आत्म जाग्रती में अवश्य सफल होगा और देखेगा कि तू अमर आत्मा है, यह दिव्य पुरूष (आनंद=परमात्मा)तेरे अंदर ही है। इसे जानने के पश्चात् तू असहाय-सा प्राणी होकर पृथ्वी पर नही भटकेगा। सब प्रकार की अकिंचनताएं तेरे मन से झड़ जाएंगी। विचार तेरे दिव्य स्वभाव के अनुरूप हो उठेंगे । इंद्रियां तेरा आदेश पालन करेंगी । तेरा शरीर एक शुद्ध समर्पित यंत्र के रूप में कार्य करेगा। तू अपने आपको आज की भॉंति अपनी प्रकृति के दास के रूप में नहीं वरन् इसके स्वामी के रूप में पायेगा। एक बार जहां आत्मा का साक्षात् हुआ, अंतस्थ सत्ता से तादात्म्य स्थायी बना, तू क्षुद्र प्राणी की जगह अपने आपको भूमा, विराट अनंत आनंद के रूप में अनुभव करेगा। वही तेरी सत्य और नित्य स्थिति है और इसके साथ ही समझेगा कि यह सब जो तेरी असहाय अवस्था थी, केवल एक नाटक था। सृष्टि मंच पर तेरा एक अभिनय था.
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प्रणाम जी

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