Tuesday, June 27, 2017

मन

*मन का भेद*

अहं की उपस्थिती से उत्पन्न भाव, दशा, स्थिती, या अनुभव मन है.. ध्यान के अनुभव या भजन भक्ती में होने वाले सुख या आनंद का भास भी इसके अंतर्गत आते हैं..
प्रश्न-कया मन होता है ?
उत्तर- नही मन है ही नही, ये तो अहं का क्रिया या अक्रिया का भास है..
कया मन का लय होना होता है?
उत्तर - नही मन का कभी लय नही होता..

प्रश्न- आप कहते हो की मन है ही नही, फिर कहते हो की मनका लय नही होता, कया ये विरोधाभास नही है ??
उत्तर- अहं की उपस्थिती ही मन कहा जाता है अर्थात जो है वो अहं ही है, मन का कोई अलग अस्तितव नही है, इसलिय कहा है मन नही है |
*मनका लय नही होता* का अर्थ है की जब मन है ही नही तो लय किस का होगा, जब तक अहं है इस मन के भास के भाव का लय नही होता, लय केवल अहं का होना है, अहं के लय के साथ ही इसकी उपस्थिती से उत्पन्न भाव का भी लय हो जाता है जिसे आप मन कहते हो | अहं की उपस्थिती की क्रिया को ही मन, चित, बुद्धि, अंकार कह दिया जाता है, मन, चित, बुद्धि, अंकार को ही मन कह दिया जाता है, मन, चित, बुद्धि, अंकार को ही बुद्धि कह दिया जाता है, मन, चित, बुद्धि, अंकार को ही चित कह दिया जाता है, मन, चित, बुद्धि, अंकार को ही हृदय कह दिया जाता है, परन्तु ये अहं ही है |
ये भेद भी सत्य के मार्ग में सहायक हो सकता है |
Www.Facebook.com/kewalshudhsatye का भेद*

अहं की उपस्थिती से उत्पन्न भाव, दशा, स्थिती, या अनुभव मन है.. ध्यान के अनुभव या भजन भक्ती में होने वाले सुख या आनंद का भास भी इसके अंतर्गत आते हैं..
प्रश्न-कया मन होता है ?
उत्तर- नही मन है ही नही, ये तो अहं का क्रिया या अक्रिया का भास है..
कया मन का लय होना होता है?
उत्तर - नही मन का कभी लय नही होता..

प्रश्न- आप कहते हो की मन है ही नही, फिर कहते हो की मनका लय नही होता, कया ये विरोधाभास नही है ??
उत्तर- अहं की उपस्थिती ही मन कहा जाता है अर्थात जो है वो अहं ही है, मन का कोई अलग अस्तितव नही है, इसलिय कहा है मन नही है |
*मनका लय नही होता* का अर्थ है की जब मन है ही नही तो लय किस का होगा, जब तक अहं है इस मन के भास के भाव का लय नही होता, लय केवल अहं का होना है, अहं के लय के साथ ही इसकी उपस्थिती से उत्पन्न भाव का भी लय हो जाता है जिसे आप मन कहते हो | अहं की उपस्थिती की क्रिया को ही मन, चित, बुद्धि, अंकार कह दिया जाता है, मन, चित, बुद्धि, अंकार को ही मन कह दिया जाता है, मन, चित, बुद्धि, अंकार को ही बुद्धि कह दिया जाता है, मन, चित, बुद्धि, अंकार को ही चित कह दिया जाता है, मन, चित, बुद्धि, अंकार को ही हृदय कह दिया जाता है, परन्तु ये अहं ही है |
ये भेद भी सत्य के मार्ग में सहायक हो सकता है |
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