तो अगर तुम्हें कभी भीतर का रस जन्मने लगे और भीतर स्वाद आने लगे.. और देर नहीं लगती आने में, जरा भीतर मुड़ो कि वह सब मौजूद है। सरोवर की तरफ पीठ किये खड़े हो, इसलिए प्यासे हो। बदलो रुख, संसार की तरफ पीठ करो और अपनी तरफ मुंह करो। और तुम चकित हो जाओगे कि क्यों तुम प्यासे थे इतने दिन तक! तुम रोओगे इसलिए कि कितना गंवाया और हसोगे इसलिए कि यह भी खूब रही, जो अपने पास था उसकी तलाश कर रहे थे! जो मिला ही था उसे खोजने निकले थे, और नहीं मिलता था तो तड़प रहे थे, परेशान हो रहे थे। और मिल सकता नहीं था, क्योंकि जो भीतर होगा बाहर नहीं मिलेगा। जो जहां है वहीं मिलेगा...
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