*सत्संग में रोज जाता हूं, पर लाभ नहीं हो रहा, क्या करूं??*
जन्मो से हमे एक भयानक रोग हो गया है की हम सच को झूट और झूट को सच मानने लगे है इस कारण हम सत्संग का मतलब भी झूठ का संग समझने लगे है इसलिए सत्संग के नाम पे झूठ का ही संग करते है सत्संग की व्याख्या से पहले हमें ये जानना जरूरी है की सच क्या है और झूट क्या है ,
पहले जान लें की झूट क्या है ,हमारा ये पञ्च भोतिक शरीर या पञ्च तत्त्व से बनी कोई भी चीज़, अन्दर मन चित बुद्धी और अहंकार ये सब झूट है, शब्द जो तुम सत्संग जानकर सुनते हो वो भी झूठ है। फिर सच क्या है एक मात्र परमात्मा या आत्मा ही सत्ये है,
अब इसी थ्योरी से सच झूट को समझना होगा ..हम पञ्च भोतिक तत्वों को ही सच मान बैठे है जरा सोचिये मंदिर में रखी मूर्ति क्या पञ्च भोतिक नही है तो क्या वो सच है? और ऊपर से है हम उन झूटी मूर्तियों की भी फोटो (याने झूठ का भी झूठ) लेके कहते है की आज के दर्शन मतलब झूटी मूर्ति की भी झूटी तस्वीर के साथ हम सत्संग करते है क्या ये सत्संग है फिर झूटे शरीरो में आस्था रखते है चेतनता से हमारा कोई नाता नही रह गया है तो सत्ये क्या है ..?? *दूैत परिवर्तनशील है इसलिय इसे असत्य कहा है और अदूैत सदा से है वैसा ही, अदूैत हमारा मूल है इसलिय सत्य कहा है* इसी सत्ये मेें सत्ये का बोध सत्ये है
इस सत्येता में उतर के देखिये आप अपने आप असत्य से दूर हो जायेंगे सावधान रहें झूट कब सत्ये में मिलके हमे भरमित कर देती है हमे पता भी नही चलता सत्ये का कोई नाम नही है इसलिए नाम को सत्ये मत मानो बल्कि केवल सत्ये को स्वीकार करो चाहे कोई भी नाम से हो सत्ये का कोई नाम नही होता क्योंकि हम तीन गुणों के संसार में रहते है इसलिए हम सत्ये को भी गुणों के आधार पर देखते है इसलिए उसका गुणों के अनुरूप नाम या संबोधन करते है जो कालांतर के साथ नाम बन जाता है जिस से भरम और असत्य का जन्म होता है |
इसलिए सत्ये को समझ कर केवल सत्संग करें .
फिर सत्संग क्या है?
*सवंय का संग ही सतसंग है.. तुम सवंय ही सत्य हो आनंद हो.. इसके अलावा कोई सत्यसंग नही है..*
Www.facebook.com/kevalshudhsatye
जन्मो से हमे एक भयानक रोग हो गया है की हम सच को झूट और झूट को सच मानने लगे है इस कारण हम सत्संग का मतलब भी झूठ का संग समझने लगे है इसलिए सत्संग के नाम पे झूठ का ही संग करते है सत्संग की व्याख्या से पहले हमें ये जानना जरूरी है की सच क्या है और झूट क्या है ,
पहले जान लें की झूट क्या है ,हमारा ये पञ्च भोतिक शरीर या पञ्च तत्त्व से बनी कोई भी चीज़, अन्दर मन चित बुद्धी और अहंकार ये सब झूट है, शब्द जो तुम सत्संग जानकर सुनते हो वो भी झूठ है। फिर सच क्या है एक मात्र परमात्मा या आत्मा ही सत्ये है,
अब इसी थ्योरी से सच झूट को समझना होगा ..हम पञ्च भोतिक तत्वों को ही सच मान बैठे है जरा सोचिये मंदिर में रखी मूर्ति क्या पञ्च भोतिक नही है तो क्या वो सच है? और ऊपर से है हम उन झूटी मूर्तियों की भी फोटो (याने झूठ का भी झूठ) लेके कहते है की आज के दर्शन मतलब झूटी मूर्ति की भी झूटी तस्वीर के साथ हम सत्संग करते है क्या ये सत्संग है फिर झूटे शरीरो में आस्था रखते है चेतनता से हमारा कोई नाता नही रह गया है तो सत्ये क्या है ..?? *दूैत परिवर्तनशील है इसलिय इसे असत्य कहा है और अदूैत सदा से है वैसा ही, अदूैत हमारा मूल है इसलिय सत्य कहा है* इसी सत्ये मेें सत्ये का बोध सत्ये है
इस सत्येता में उतर के देखिये आप अपने आप असत्य से दूर हो जायेंगे सावधान रहें झूट कब सत्ये में मिलके हमे भरमित कर देती है हमे पता भी नही चलता सत्ये का कोई नाम नही है इसलिए नाम को सत्ये मत मानो बल्कि केवल सत्ये को स्वीकार करो चाहे कोई भी नाम से हो सत्ये का कोई नाम नही होता क्योंकि हम तीन गुणों के संसार में रहते है इसलिए हम सत्ये को भी गुणों के आधार पर देखते है इसलिए उसका गुणों के अनुरूप नाम या संबोधन करते है जो कालांतर के साथ नाम बन जाता है जिस से भरम और असत्य का जन्म होता है |
इसलिए सत्ये को समझ कर केवल सत्संग करें .
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