*कोई ज्ञान मार्ग को श्रेष्ठ बताता है तो कोई प्रेम मार्ग को, कृपया स्पष्ट करें की कोनसा मार्ग श्रेष्ठ है ।*
जिन लोगो को या ग्यानीयों को ग्यान में आनंद आता है वो प्रेम को ज्यादा अहमियत नही देते, वो अपने आप को अपने स्थान पर सही मानते है व प्रेम के लिय ग्यान से मिलने वाले आनंद को छोड़ना नही चाहते..
वहीं जो प्रेमी होते हैं वो प्रेम में ही आनंद लेते है रोते हैं रिझाते हैं | ये भी अपने को ग्यानीयों से सही मान्ते हैं व प्रेम से मिलने वाले आनंद को छोड़ नही सकते..
इसलिय ये दो मार्ग बन गये..
*अब प्रश्न उठता है की सही मार्ग कौन सा है और कया वो इन दोनो से अलग है और यह भी कहा गया है की सभी मार्ग परमात्मा की और जाते हैं फिर गलत कया है ???*
इन सभी शंकाओं का निवारण आज हम इस पोस्ट में करेंगें तो ध्यान से पढिये...
तो ध्यान दो ग्यान और प्रेम ये दो वस्तुऐ नही हैं, ये एक ही वस्तु के दो नाम याहां ध्यान देने वाली बात यह है की ग्यानी और प्रेमी ये दो अलग भाव के नाम हैं ये दूैत के नाम हैं पर ग्यान व प्रेम दो नही हैं यह एक ही है.. ये अदूैत के भाव हैं |
ग्यान व प्रेम एक कैसे है ?
जब ग्यानी और प्रेमी समाप्त हो जाता है तब ग्यान और प्रेम शेष रहता है यह वही है जो सत्य है नित्य है और जो आनंद है यही आत्मा है यही परमात्मा है यही ग्यान है यही प्रेम है | इसलिय ये एक ही है दो नही है.. ग्यानी और प्रेमी दो हैं कयोंकी इनमें अहं विद्यमान रहता है अहं से ही ग्यानी और प्रेमी हो जाते हैं|
सभी मार्ग परमात्मा की और जाते हैं फिर गलत कया है ???
ग्यानी को ग्यान में *आनंद* आता है प्रेमी को प्रेम में *आनंद* आता है दोनो अपने को सही मानते हैं कयोंकी दोनो को *आनंद* आता है | याहां ध्यान देने वाली वाल यह है की दोनो में आनंद की समानता है , दोनो का जो कोमन भाव है वह आनंद है और आनंद ही आत्मा है आनंद ही परमात्मा या बृह्म है, तो अब बात को ध्यान से पकडना की आनंद कही बाहर से नही आता ये दोनो का सवंय का ही आनंद है जो उन्हे ग्यानी और प्रेमी होने मे भास हो रहा है इसलिय मार्ग दोनो का एक ही है *आनंद* इसलिय सभी मार्ग आनंद की और ही जाते है पर इनमें जो गलत है वो है *अहं* जिस की उपस्थिती से ग्यानी और प्रेमी हो जाते हो.. भोग व योग में भी आनंद है कयोंकी सब आनंद से ही बना है पर अहं के कारण भोगी व योगी हो जाते हो.. तो सभी मार्ग जैसे कर्म, ग्यान, योग, भक्ती, प्रेम, या भोग सभी आनंद के ही मार्ग हैं पर ये सभी अहं के कारण सत्य से विमुख हैं, अहं समाप्ती के बाद सब एक ही हैं दो तीन या चार नही हैं....
*ए मैं मैं क्यों ए मरत नहीं,और कहावत है मुरदा। आड़े नूर जमाल के, एही है परदा।*
प्रणाम जी
Www.facebook.com/kevalshudhsatye
जिन लोगो को या ग्यानीयों को ग्यान में आनंद आता है वो प्रेम को ज्यादा अहमियत नही देते, वो अपने आप को अपने स्थान पर सही मानते है व प्रेम के लिय ग्यान से मिलने वाले आनंद को छोड़ना नही चाहते..
वहीं जो प्रेमी होते हैं वो प्रेम में ही आनंद लेते है रोते हैं रिझाते हैं | ये भी अपने को ग्यानीयों से सही मान्ते हैं व प्रेम से मिलने वाले आनंद को छोड़ नही सकते..
इसलिय ये दो मार्ग बन गये..
*अब प्रश्न उठता है की सही मार्ग कौन सा है और कया वो इन दोनो से अलग है और यह भी कहा गया है की सभी मार्ग परमात्मा की और जाते हैं फिर गलत कया है ???*
इन सभी शंकाओं का निवारण आज हम इस पोस्ट में करेंगें तो ध्यान से पढिये...
तो ध्यान दो ग्यान और प्रेम ये दो वस्तुऐ नही हैं, ये एक ही वस्तु के दो नाम याहां ध्यान देने वाली बात यह है की ग्यानी और प्रेमी ये दो अलग भाव के नाम हैं ये दूैत के नाम हैं पर ग्यान व प्रेम दो नही हैं यह एक ही है.. ये अदूैत के भाव हैं |
ग्यान व प्रेम एक कैसे है ?
जब ग्यानी और प्रेमी समाप्त हो जाता है तब ग्यान और प्रेम शेष रहता है यह वही है जो सत्य है नित्य है और जो आनंद है यही आत्मा है यही परमात्मा है यही ग्यान है यही प्रेम है | इसलिय ये एक ही है दो नही है.. ग्यानी और प्रेमी दो हैं कयोंकी इनमें अहं विद्यमान रहता है अहं से ही ग्यानी और प्रेमी हो जाते हैं|
सभी मार्ग परमात्मा की और जाते हैं फिर गलत कया है ???
ग्यानी को ग्यान में *आनंद* आता है प्रेमी को प्रेम में *आनंद* आता है दोनो अपने को सही मानते हैं कयोंकी दोनो को *आनंद* आता है | याहां ध्यान देने वाली वाल यह है की दोनो में आनंद की समानता है , दोनो का जो कोमन भाव है वह आनंद है और आनंद ही आत्मा है आनंद ही परमात्मा या बृह्म है, तो अब बात को ध्यान से पकडना की आनंद कही बाहर से नही आता ये दोनो का सवंय का ही आनंद है जो उन्हे ग्यानी और प्रेमी होने मे भास हो रहा है इसलिय मार्ग दोनो का एक ही है *आनंद* इसलिय सभी मार्ग आनंद की और ही जाते है पर इनमें जो गलत है वो है *अहं* जिस की उपस्थिती से ग्यानी और प्रेमी हो जाते हो.. भोग व योग में भी आनंद है कयोंकी सब आनंद से ही बना है पर अहं के कारण भोगी व योगी हो जाते हो.. तो सभी मार्ग जैसे कर्म, ग्यान, योग, भक्ती, प्रेम, या भोग सभी आनंद के ही मार्ग हैं पर ये सभी अहं के कारण सत्य से विमुख हैं, अहं समाप्ती के बाद सब एक ही हैं दो तीन या चार नही हैं....
*ए मैं मैं क्यों ए मरत नहीं,और कहावत है मुरदा। आड़े नूर जमाल के, एही है परदा।*
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