Thursday, December 28, 2017

* ''स्वर्ग और नरक क्या हैं?''*

*''हम स्वयं!''*

एक बार किसी शिष्य ने अपने गुरु से पूछा, ''मैं जानना चाहता हूं कि स्वर्ग और नरक कैसे हैं?'' उसके गुरु ने कहा, ''आंखें बंद करो और देखो।'' उसने आंखें बंद की और शांत शून्यता में चला गया। फिर, उसके गुरु ने कहा, ''अब स्वर्ग देखो।'' और थोड़ी देर बाद कहा, ''अब नरक!'' जब उस शिष्य ने आंखें खोली थीं, तो वे आश्चर्य से भरी हुई थीं। उसके गुरु ने पूछा, ''क्या देखा?'' वह बोला, ''स्वर्ग में मैंने वह कुछ भी नहीं देखा, जिसकी कि लोग चर्चा करते हैं। न ही अमृत की नदियां थीं और न ही स्वर्ण के भवन थे- वहां तो कुछ भी नहीं था और नरक में भी कुछ नहीं था। न ही अग्नि की ज्वालाएं थी और न ही पीडि़तों के रुदन। इसका कारण क्या है? क्या मैंने स्वर्ग नरक देखें या कि नहीं देखे।''

 उसका गुरु हंसने लगा और बोला, ''निश्चय ही तुमने स्वर्ग और नरक देखें हैं, लेकिन अमृत की नदियां और स्वर्ण के भवन या कि अग्नि की ज्वाला और पीड़ा का रुदन तुम्हें स्वयं ही वहां ले जाने होते हैं। वे वहां नहीं मिलते। जो हम अपने साथ ले जाते हैं, वही वहां हमें उपलब्ध हो जाते हैं। हम ही स्वर्ग हैं, हम ही नरक हैं।''
व्यक्ति जो अपने अंदर मान्यता में होता है, उसे ही अपने बाहर भी पाता है। बाह्य, आंतरिक का प्रक्षेपण है। भीतर स्वर्ग हो, तो बाहर स्वर्ग है। और, भीतर नरक हो, तो बाहर नरक। स्वयं में ही सब कुछ छिपा है।
भीतर परमात्मा तो बाहर भी परमात्मा, *जो कण कण में परमात्मा को देखता है उसे वो कहीं नहीं मिलता ओर  जिसे अंदर परमात्मा का भास हो जाता है उसे कण कण में भी परमात्मा दिख जाता है..*
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Wednesday, December 27, 2017

*नित्य लोग धर्म पर विवाद करते हैं, कोई कृष्ण पर तो कोई राम पर, सभी दूसरों को अधर्मी बताते हैं, कृपया बताएं कि उनमें से अधर्मी कोन है ?*


सत्य एक ही है ओर वो निर्विवादित है अर्थात सत्य पर कोई  विवाद नहीं है, जिसमें विवाद है वो सत्य नहीं है, सूर्य से ऊष्मा मिलती है क्या इसपर कोई विवाद है ? इसपर विवाद कोन करेगा, जिसने सूर्य देखा ना हो जो सूर्य को जनता ना हो वो इसपर तरह तरह के विवाद करता है । इसलिए जो धर्म से दूर है वही धर्म पर विवाद करता है, तो धर्म क्या है ?

*ध्यान रखो स्वयं से जो दूर ले जावे, वही है, अधर्म और जो स्वयं में ले आवे, उसे ही मैंने धर्म जाना है।''*

*स्वयं के भीतर प्रकाश की छोटी-सी ज्योति भी हो, तो सारे संसार का अंधेरा पराजित हो जाता है। और, यदि स्वयं के केंद्र पर अंधकार हो, तो बाह्याकाश के करोड़ों सूर्य भी उसे नहीं मिटा सकते हैं।*

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Tuesday, December 26, 2017

मनुष्य को अपना सारा जीवन परमात्मा की खोज में दौड़ते हुए नहीं व्यर्थ करना है, मेरी दृष्टि में अगर वो अपने आप को पूरी तरह जान ले तो वो अभी और इसी वक्त परमात्मा है। स्वयं का सम्पूर्ण आविष्कार ही एकमात्र विकास है। कुछ ऐसा नहीं जो बाहर से खोजा जा सके। यह कुछ ऐसा है जो अन्दर से अनुभव किया जाता है। दौड़ नहीं लगानी है, डूबना है, गहरा ओर गहरा, खुदमे । फिर वो सबकुछ पालोगे जिसके लिए दौड़ रहे थे । तब पता चलेगा कि दौड़ना नहीं था ठहरना था ।

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Monday, December 25, 2017

*कृपया ऐसा कोई उपाय बताएं कि में जीवन मृत्यु से मुक्त हो जाऊं, मुझे बार बार मृत्यु का सामना ना करना पड़े ।*

मृत्यु से घबराकर हमने परमात्मा का अविष्कार कर लिया है । भय पर आधारित परमात्मा से असत्य और कुछ भी नहीं है। सारी उम्र मृत्यु के भय में अपना परमात्मा बना के उसके सहारे जीवन बिता देते हो, झूठ से बचने के लिए झूठ का सहारा लेते हो तो शत प्रतिशत तुम फसने वाले हो झूठे मृत्यु के जाल में क्योंकि अंधेरा अंधेरे का इलाज नहीं है । तुम मरोगे नहीं, यही सत्य है, यही सत्य का पहला कदम है । क्योंकि अगर तुम मर जाते तो जो तुम आज हो ये कोन है ?
समाप्त होने के बाद क्या तुम दोबारा वन गए ? नहीं, 
जो समाप्त हुआ था वो दोबारा नहीं बना, ओर जो समाप्त नहीं हुआ था वहीं आज मृत्यु से डर रहा है । जिसकी मृत्यु नहीं हुई थी, जो आज है, वह कल भी रहेगा, फिर झूठे भय में क्यों झूठ का सहारा लेकर झूठ का जाल बना कर उसमे उलझते हो । तुम नहीं मरोगे ये सत्य है, अब इसी सत्य से अपना सफर शुरू करो । सत्य को धारण करके सत्य को उपलब्ध हो जाओ । नहीं तो झूठे मृत्यु का भय दिखा कर कोई भी पाखंडी तुम्हे अपना दास बना लेगा । जैसे अनेक लोगों को बना रखा है ।
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Sunday, December 24, 2017

अभी आपके आंदर राम है, अभी आपके अंदर कृष्ण है, अभी आपके अंदर महापुरुष हैं, अभी आपके अंदर स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानन्द, आदिगुरु शंकाचार्य आदि अनेक विभूतियां हैं, अभी आपके अंदर शिष्य है, अभी अंदर गुरु है, अभी आपके अंदर ज्ञान है, आपके अंदर गुरु का दिया हुआ मंत्र है, आपके अंदर सबकुछ है *बस एक महत्वपूर्ण वस्तु का अभाव है ओर वो है आप खुद*
*स्वयं*
*कोन है जो आपमें इतना बोलता है ?*
*कोन है जो आपमें इतना शांत है ?*
सब जानते हो बस स्वयं को नहीं जानते
*जो जानना है वो नहीं जानते बाकी सब जानने का प्रयास करते हो*
*पहले आपको पहचानो बाकी सब देखा जायेगा*
*अगर अपने आपको नहीं पहचाना तो ये बाकी सब आपको के डूबेगा*

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Saturday, December 23, 2017

*सन्यास क्या है*

प्रकाश के आगमन पर अंधेरा चला जाता है । ऐसे ही ज्ञान के आगमन पर आंतरिक अवस्था में जो भी व्यर्थ है, वह बह जाता है और तब जो शेष रह जाता है वह संन्यास है ।
संन्यास का अर्थ है, यह बोध कि मैं शरीर ही नहीं हूं आत्मा हूं । इस बोध के साथ ही भीतर आसक्ति और मोह नहीं रह जाता है । इसी को सन्यास कहते है, यह आंतरिक आस्था है, अगर यह अवस्था है तो आप घर में रहो या हिमालय पर , वस्त्र भगवा पहनो या आधुनिक, बाल छोटे रखो या बड़े, काले रखो या सफेद, कोई फ़र्क नहीं पड़ता । ओर अगर ये नहीं है तो भी चाहे कुछ भी करलो कोई लाभ नहीं है ।
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Friday, December 22, 2017

*क्या विनम्र होकर, सबसे प्रेम करके या अन्य किसी प्रयास से अपने अहम को समाप्त कर सकते है?*


अहंकार के मार्ग अति सूक्ष्म हैं । ओढ़ी हुई विनम्रता उसकी सूक्ष्मतम गति है । ऐसी विनम्रता उसे ढकती कम- और प्रकट ज्यादा करती है । वस्तुत: न तो प्रेम को ओढ़कर अहम मिटाया जा सकता है और न ही विनम्रता के वस्त्रों से अहंकार की नग्नता ही ढकी जा सकती है । राख के नीचे जैसे अंगरे छिपे और सुरक्षित होते हैं और हवा का जरा-सा झोंका ही उन्हें प्रकट कर देता है ।

 ऐसे ही आरोपित व्यक्तित्त्वों में यथार्थ दबा रहता है । एक धीमी-सी खरोंच ही अभिनय को तोड़कर उसे प्रत्यक्ष कर देती है । ऐसी परोक्ष बीमारियां प्रत्यक्ष बीमारियों से ज्यादा ही भयंकर और घातक होती हैं, लेकिन स्वयं को ही धोखा देने में मनुष्य का कौशल बहुत विकसित है और वह उस कौशल का इतना अधिक उपयोग करता है कि वह उसका स्वभाव बन जाता है । हजारों वर्षों से जबरदस्ती अहम को दबाने के प्रयास में इस कौशल के अतिरिक्त और कुछ भी निर्मित नहीं हुआ है । अहम को मिटाने में तो नहीं, उसे ढकने में मनुष्य जरूर ही सफल हो गया है और इस भांति तथाकथित यह अहम एक महारोग सिद्ध हुआ है ।

*तो करना क्या है*


 *इसके विष्य में तुम्हे एक जबरदस्त बात बताता हूं*


*जब तुम बाल्टी या किसी भी अन्य पात्र से समुद्र को खाली करने का प्रयास करते हो तो समुंद्र कभी भी खाली नहीं होगा ये तो सत्य है, पर एक सत्य ओर है जिस से आप अनभिज्ञ रहते हो, वोंक्या है ? वो ये है कि आप जिस बाल्टी या पात्र से उसे खाली करने गए थे उसमें भी समुन्द आ गया है अर्थात वो भी खारा हो गया है। इसलिए जब तुम अहम को समाप्त करने का प्रयास करते हो तो अहम समाप्त नहीं होता बल्कि तुम्हारे प्रयासों में भी अहम आ जाता है, वो प्रयास है - विनम्र होना, सबसे प्रेम करना, सन्यासी होना, गुरु होना, चेला होना आदि आदि।*


तो ये समाप्त कैसे हो?


*अंधेरे को समाप्त नहीं कर सकते कभी भी, बस आप उजाला कर सकते हो। फिर अंधेरा रहेगा ही नही, अहम नहीं मिटाना बस आत्मज्ञान का उजाला करना है।*

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Thursday, December 21, 2017

*कृपया कर्ता ओर कर्म के विषय में बताएं*


कर्म नहीं बांधते, कर्ता बांध लेता है । कर्म नहीं छोड़ना है । कर्ता छूट जाए तो छटना हो जाता है । जो कर्म छोड्‌कर भागता है, उसकी कर्म की ऊर्जा व्यर्थ के कर्मों में सक्रिय हो जाती है ।कर्मनहीं छोड़ा जा सकता, फिर भी इस देश का संन्यासी हजारों साल से कर्म छोड़ने की असंभव चेष्टा कर रहा है, कर्म नहीं छूटा, सिर्फ निठल्लापन पैदा हुआ है । कर्म नहीं छूटा, सिर्फ अनिष्करियताता पैदा हुई है और निष्क्रियता का अर्थ है, व्यर्थ कर्मों का जाल, जिनसे कुछ फलित भी नहीं होता, लेकिन कर्म .जारी रहते हैं । *पाखंड उपलब्ध हुआ है* । जो कर्म को छोड्‌कर भागता है, उसकी कर्म की ऊर्जा, व्यर्थ के कर्मों में सक्रिय हो जाती है ।


कर्ता समाप्त करना होता है, ओर वास्तव में जो समाप्त करना है उसका अस्तित्व है ही नहीं, केवल स्त्य का अस्तित्व है, तो केवल सत्य को ही उपलब्ध होना है अस्त्ये अपने आप समाप्त हो जाएगा ।
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Wednesday, December 20, 2017

आत्मज्ञान एक समझ है सत्य को वैसे ही स्वीकारने की जैसा वो है, यह समझ है कि यही सब कुछ है, यही बिलकुल सही है , बस  यही है. आत्मज्ञान कोई उपलब्धि नहीं है, यह ये जानना है कि ना कुछ पाना है और ना कहीं जाना है.
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Tuesday, December 19, 2017

तीर्थयात्रा करने के लिए कहीं जाने की आवशयकता नहीं है।  सबसे अच्छी और बड़ी तीर्थयात्रा आपके अंतकरण की आत्मा की ओर है, जिसेमें विशेष रूप से अंतकरण शुद्ध हो जाता है। इसके अलावा कोई भी तीर्थयात्रा तुम्हे शुद्ध नहीं कर सकती चाहे पूरी उम्र वहीं बिता दो ।


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Monday, December 18, 2017

1- जिस तरह किसी दीपक को चमकने के लिए दूसरे दीपक की ज़रुरत नहीं होती है ठीक उसी तरह आत्मा को जो खुद ज्ञान का स्वरूप है उसे और क़िसी ज्ञान कि आवश्यकता नही होती है.

2- हमें आनंद तभी मिलता है जब हम आनंद कि तलाश नही कर रहे होते है.

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Thursday, December 14, 2017

जो मान्यता को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करती है।

आत्म-ज्ञान की तलवार से काटकर अपने ह्रदय से  मान्यता के द्वारा उत्पन्न अज्ञान के संदेह को अलग कर दो. अनुशाषित रहो. उठो।

क्योंकि नर्क के तीन द्वार हैं: वासना, क्रोध और लालच ओर ये सब मान्यता रूपी पेड़ की ही टहनियां हैं ।

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जो भी मनुष्य अपने जीवन में अध्यात्मिक ज्ञान के लिए दृढ़ संकल्पो मे स्थिर हैं, वह समान्य रूप से संकटो के आक्रमण को सहन कर सकते हैं. और निश्चित रूप से यह व्यक्ति आनंद और मुक्ति होने के पात्र हैं।
परमात्मा की शांति उनके साथ होती हैं जिसके मन और आत्मा मे एकता हो, वो इच्छा और क्रोध से मुक्त होते हैं, जो आत्मा को सही मायने मे जनता हो।
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Monday, December 4, 2017

*जैसे शुक्षम शरीर होता है, क्या वैसे ही सूक्ष्म संसार भी होता है ? अगर हां तो वो क्या है??*

 यह संसार दो प्रकार का है- एक स्थूल, दूसरा सूक्ष्म | शब्दादिक विषय सम्बन्धी जितने भौतिक पदार्थ हैं, वही स्थूल संसार है एवं इन पदार्थों की हृदय में जो बलवती कामना है वही सूक्ष्म संसार है | स्थूल संसार के छोड़ देने से सूक्ष्म संसार नहीं समाप्त होता अर्थात् सांसारिक पदार्थों के परित्याग मात्र से इच्छायें नहीं समाप्त होतीं | किन्तु यदि आत्मबोध हो जाय तो सूक्ष्म संसार अर्थात् इच्छाओं और स्थूल संसार का भान ही नहीं रहता |  इसलिय तू निरन्तर आत्मपद का अभ्यया करने से वासमनाओं का परित्याग अपने आप हो जायगा | नही तो यह जीवन  मुर्खों की भांती जीवन व्यर्थ निकल जायेगा |
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प्रणाम जी

Friday, December 1, 2017

अध्यात्मज्ञान नित्यत्वं तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम्।
एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोऽन्यथा।। (गीता, १३/११)


आत्मा के आधिपत्य में निरन्तर चलना अध्यात्म का आरम्भ है। उसके संरक्षण में चलते हुए परमतत्त्व परमात्मा का प्रत्यक्ष दर्शन और दर्शन के साथ मिलनेवाली जानकारी ज्ञान है। यही अध्यात्म की पराकाष्ठा है। इसके अतिरिक्त सृष्टि में जो कुछ है अज्ञान है।