*कृपया कर्ता ओर कर्म के विषय में बताएं*
कर्म नहीं बांधते, कर्ता बांध लेता है । कर्म नहीं छोड़ना है । कर्ता छूट जाए तो छटना हो जाता है । जो कर्म छोड्कर भागता है, उसकी कर्म की ऊर्जा व्यर्थ के कर्मों में सक्रिय हो जाती है ।कर्मनहीं छोड़ा जा सकता, फिर भी इस देश का संन्यासी हजारों साल से कर्म छोड़ने की असंभव चेष्टा कर रहा है, कर्म नहीं छूटा, सिर्फ निठल्लापन पैदा हुआ है । कर्म नहीं छूटा, सिर्फ अनिष्करियताता पैदा हुई है और निष्क्रियता का अर्थ है, व्यर्थ कर्मों का जाल, जिनसे कुछ फलित भी नहीं होता, लेकिन कर्म .जारी रहते हैं । *पाखंड उपलब्ध हुआ है* । जो कर्म को छोड्कर भागता है, उसकी कर्म की ऊर्जा, व्यर्थ के कर्मों में सक्रिय हो जाती है ।
कर्ता समाप्त करना होता है, ओर वास्तव में जो समाप्त करना है उसका अस्तित्व है ही नहीं, केवल स्त्य का अस्तित्व है, तो केवल सत्य को ही उपलब्ध होना है अस्त्ये अपने आप समाप्त हो जाएगा ।
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कर्म नहीं बांधते, कर्ता बांध लेता है । कर्म नहीं छोड़ना है । कर्ता छूट जाए तो छटना हो जाता है । जो कर्म छोड्कर भागता है, उसकी कर्म की ऊर्जा व्यर्थ के कर्मों में सक्रिय हो जाती है ।कर्मनहीं छोड़ा जा सकता, फिर भी इस देश का संन्यासी हजारों साल से कर्म छोड़ने की असंभव चेष्टा कर रहा है, कर्म नहीं छूटा, सिर्फ निठल्लापन पैदा हुआ है । कर्म नहीं छूटा, सिर्फ अनिष्करियताता पैदा हुई है और निष्क्रियता का अर्थ है, व्यर्थ कर्मों का जाल, जिनसे कुछ फलित भी नहीं होता, लेकिन कर्म .जारी रहते हैं । *पाखंड उपलब्ध हुआ है* । जो कर्म को छोड्कर भागता है, उसकी कर्म की ऊर्जा, व्यर्थ के कर्मों में सक्रिय हो जाती है ।
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