एक विद्वान हैं और खूब पढ़ा-लिखा है। बहुत तर्क उन्होंने इकटं्ठे किये हैं। मैंने वह सब शांत हो सुने। और फिर सिर्फ एक ही बात पूछी है कि क्या इन सारे विचारों से शांति और आनंद उन्हें मिला है?
इस पर वे थोड़ा सकुचा गये हैं और उत्तर नहीं खोज पाए हैं।
सत्य की कसौटी तर्क नहीं है। सत्य की कसौटी विचार नहीं है। सत्य की कसौटी है आनंदानुभूति। जो विचार-दर्शन है वो यहां नहीं लेकर आ सकता, ये सब विचार तो अविचार ही ज्यादा है। इससे, मैंने उनसे कहा, 'मैं आपकी बातों का विरोध नहीं करता हूं। बस, आपसे ही- अपने आपसे यह प्रश्न पूछने की विनय करता हूं।'
धर्म विचार नहीं है। वह तो आनंदमय हो जाने का एक विज्ञान मात्र है। उसकी पोहोच विवाद में नहीं, प्रयोग में है।
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