*मैंने संतो से सुना है की अंतःकरण शुद्ध हुए बिना ब्रह्मज्ञान प्राप्त नहीं होता, और उसके लिए भौतिकत्याग, वैराग्य और परमात्मा के लिऐ रोना आदि मार्ग बताते है, इसलिए ब्रह्मज्ञान बोहोत दूर की वस्तु लगती है क्या करू?*
जो लोग ब्रह्मज्ञान की बातें करते हैं, अक्सर वे तोते की तरह एक ही रट लगाये रहते हैं किड— जीवन का कोई अर्थ नहीं है... संसार में तो दुख ही दुख है... जीवन तो विकारों से भरा पड़ा है, आदि आदि। क्योंकि अधिकतर तो संसार को छोड़ने वाले ही ब्रह्मज्ञान की बातें करते हैं, इसलिये हमें लगता है कि ब्रह्मज्ञान किसी प्रकार के त्याग पर आधारित है। इसलिये ब्रह्मज्ञान से हमें भय लगने लगता है।
लेकिन यह भय निराधार है। हम आप को यह बताना चाहते हैं कि ब्रह्मज्ञान कोई त्याग नहीं है — यह तो एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। ब्रह्मज्ञान आपको संपूर्ण सुख देता है — भौतिक भी और अध्यात्मिक भी। ब्रह्म का तो अर्थ ही आनन्द है।
ब्रह्मज्ञान कोई हौव्वा नहीं है। यह तो एक व्यवहारिक सूत्र है जो हमारी उच्चतम सफलता का मार्ग खोलता है।
*खोने का नाम ब्रह्मज्ञान नहीं है, पाने का ब्रह्मज्ञान है, स्वयं को पाना, ब्रह्मज्ञान में त्यागना कुछ भी नही है, त्याग और व्यराग तो शारीरिक विषय है, ब्रह्मज्ञान से भौतिक पदार्थ छुटते नहीं है बल्कि आपको उनके भोग के सही सुत्र का ज्ञान हो जाता है, जिस से आप उनका और बेहतर तरीके से प्रयोग कर सकते हैं*
आनन्द ही ब्रह्म है — इस बोध में ब्रह्मज्ञान है।
यहाँ पर एक बात को ठीक से समझना है — ब्रह्म और आनन्द एक ही तत्त्व के दो नाम हैं। ब्रह्म आनन्द से अलग नहीं है, आनन्द ब्रह्म से अलग नहीं है। ऐसा नहीं है कि ब्रह्म में आनन्द है, और ऐसा भी नहीं है कि आनन्द में ब्रह्म है। तथ्य यह है कि आनन्द ही ब्रह्म है और ब्रह्म ही आनन्द है...
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प्रणाम जी
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