Friday, November 2, 2018

खोज और खोजी

न 'स्व' आत्मा है, न 'पर' आत्मा है। यह द्वैत वैचारिक है। यह द्वैत मन में है। मन आभास सत्ता है। वह कभी वर्तमान में नहीं होता है। वह या तो अतीत में होता है, या भविष्य में। न अतीत की सत्ता है, न भविष्य की। एक स्मृति में है, एक कल्पना में है। सत्ता में दोनों नहीं हैं। 

इसअसत्ता से 'मैं' का जन्म होता है। 'मैं' विचार की उत्पत्ति है। काल भी विचार की उत्पत्ति है। विचार के कारण, 'मैं' के कारण, आत्मा आवरण में है। वह है, पर खोयी मालूम होती है। फिर यही 'मैं' यही विचार-प्रवाह इस तथाकथित खोयी आत्मा को खोजने चलता है। यह खोज असंभव है, क्योंकि इस खोज से 'मैं' और पुष्ट होता है- सशक्त होता है।

'मैं' के द्वारा आत्मा को खोजना, स्वप्न के द्वारा जागृति को खोजने जैसा है। *'मैं' के द्वारा नहीं, 'मैं' के विसर्जन से उसको पाना है।*  स्वप्न के जाते ही जागृति है, 'मैं' के जाते ही आत्मा है। आत्मा आनंद है, क्योंकि पूर्णता है। उसमें 'स्व',  या 'पर' नहीं है। वह अद्वैत है। वह कालातीत है। विचार के, मन के जाते ही जाना जाता है कि उसे कभी खोया नहीं था।

इसलिए उसे खोजना नहीं है। खोज छोड़नी है और खोजने वाले को छोड़ना है। खोज और खोजी के मिटते ही खोज पूरी हो जाती है। 'मैं' को खोकर उसे पा लिया जाता है।

For MORE SATSANG visit this page👇

http://satsangwithparveen.blogspot.in/?m=1

No comments:

Post a Comment