जब खैंचत भर कसीस, तब मुतलक डारत मार ।
इन विध भेदत सब अंगों, मूल तन मिटत विकार ।।
परमात्मा जब नयनो से प्रेम भरे इशारे कर रूह को बुलाते है तो नयनो मे समाए असीम प्रेम को रूह महसूस करती है ! उनके प्रेम के बानो मे चंचलता चपलता देखते ही बनती है ! परमात्मा जिसे नज़र भर निहार ले तो वो रूह तो उनके इश्क मे डूब जाती है ! रूह जब ध्यान मे हक नयनो को देखती है तो वो नयनो के सोंद्रय उनकी जोती मे उनके असीम प्यार मे डूब जाती है तो इस सरीर के मोह अहंकार से रहित हो जाती है ! परमात्मा के नयनो से अपने नयन जब रूह मिलाती है तो प्यारी रूह प्रेम और मस्ती मे गर्क हो जाती है !
प्रणाम जी
इन विध भेदत सब अंगों, मूल तन मिटत विकार ।।
परमात्मा जब नयनो से प्रेम भरे इशारे कर रूह को बुलाते है तो नयनो मे समाए असीम प्रेम को रूह महसूस करती है ! उनके प्रेम के बानो मे चंचलता चपलता देखते ही बनती है ! परमात्मा जिसे नज़र भर निहार ले तो वो रूह तो उनके इश्क मे डूब जाती है ! रूह जब ध्यान मे हक नयनो को देखती है तो वो नयनो के सोंद्रय उनकी जोती मे उनके असीम प्यार मे डूब जाती है तो इस सरीर के मोह अहंकार से रहित हो जाती है ! परमात्मा के नयनो से अपने नयन जब रूह मिलाती है तो प्यारी रूह प्रेम और मस्ती मे गर्क हो जाती है !
प्रणाम जी
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