सुप्रभात जी
Satsangwithparveen.blogspot.com
एक साधू ने अपने शिष्ये को एक पौधा दिया और कहा की इस पौधे में हमेशा मीठा पानी डालना जिस से इसके फल मीठे होंगे इसमें कभी ही खारा पानी मत डालना नही तो फल कड़वे होंगे और याद रखना इसके फल तुम्हे खाने की जरूरत नही होगी जब फल लगेंगे तो उसका स्वाद तुम्हे अपने आप मिलने लगेगा ..
शिष्ये पौधा लेकर अपनी कुटिया में आगया व् वो पौधा लगा लिया उसकी कुटिया के पास खारे पानी की नदी थी मीठे पानी के लिए उसे दूर जाना पड़ता था इसलिए उसने सोचा की अगर मई मीठा पानी पोधे में डाल दूंगा तो मुझे दूर से ज्यादा पानी लाना पड़ेगा जो मेरे लिए कठिन होगा इसलिए वो केवल एक मटकी पिने लायक लाता और पोधे में खारा पानी डाल देता पानी डालते हुए उसे अपने गुरु की बात भी याद आती की खारा पानी मत डालना पर वो सोचता की कोई बात नही जब समय होगा तब मीठा पानी दाल दूंगा जिस से फल अच्छे ही होंगे और वैसे भी ये मेरे गुरु का दिया हुआ है तो इसके फल कड़वे हो ही नही सकते.. समय बीत गया और फल लगने लगे पर वो कड़वे थे जिसका स्वाद उसको अपने आप मिलने लगा वो कड़वाहट इतनी ज्यादा बढ़ गयी की उसका जीना मुश्किल हो गया..
वो पौधा और कोई नही हमारा मन है इसके जैसे विचार हम देंगे ये वैसे ही अछा या बुरा हमारे मार्ग का निर्माण करेगा और ये करना हमे ही पड़ेगा गुरु तो केवल इतना कर सकते है की हमे अच्छे बुरे मार्ग के बारे में बता देंगे पर प्रयत्न हमे ही करना पड़ेगा हम अंधे होकर गुरु के भरोसे बैठ जाते है की जैसे विचार आते है कोई बात नही गुरु जी सब संभाल लेंगे इसी गफलत में अनंत जन्म बिता दिए ये भी बीत रहा है और बीत ही जायेगा अगर प्रयत्न ही करोगे तो बार बार आना पड़ेगा पर बिना खुद यत्न किये बात नही बनेगी ये बात आज समझ लो या करोड़ो जन्म बाद..
और कोई विकल्प नही है..मन को कैसा आहार दे रहे हो सावधान रहो..
प्रणाम जी
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एक साधू ने अपने शिष्ये को एक पौधा दिया और कहा की इस पौधे में हमेशा मीठा पानी डालना जिस से इसके फल मीठे होंगे इसमें कभी ही खारा पानी मत डालना नही तो फल कड़वे होंगे और याद रखना इसके फल तुम्हे खाने की जरूरत नही होगी जब फल लगेंगे तो उसका स्वाद तुम्हे अपने आप मिलने लगेगा ..
शिष्ये पौधा लेकर अपनी कुटिया में आगया व् वो पौधा लगा लिया उसकी कुटिया के पास खारे पानी की नदी थी मीठे पानी के लिए उसे दूर जाना पड़ता था इसलिए उसने सोचा की अगर मई मीठा पानी पोधे में डाल दूंगा तो मुझे दूर से ज्यादा पानी लाना पड़ेगा जो मेरे लिए कठिन होगा इसलिए वो केवल एक मटकी पिने लायक लाता और पोधे में खारा पानी डाल देता पानी डालते हुए उसे अपने गुरु की बात भी याद आती की खारा पानी मत डालना पर वो सोचता की कोई बात नही जब समय होगा तब मीठा पानी दाल दूंगा जिस से फल अच्छे ही होंगे और वैसे भी ये मेरे गुरु का दिया हुआ है तो इसके फल कड़वे हो ही नही सकते.. समय बीत गया और फल लगने लगे पर वो कड़वे थे जिसका स्वाद उसको अपने आप मिलने लगा वो कड़वाहट इतनी ज्यादा बढ़ गयी की उसका जीना मुश्किल हो गया..
वो पौधा और कोई नही हमारा मन है इसके जैसे विचार हम देंगे ये वैसे ही अछा या बुरा हमारे मार्ग का निर्माण करेगा और ये करना हमे ही पड़ेगा गुरु तो केवल इतना कर सकते है की हमे अच्छे बुरे मार्ग के बारे में बता देंगे पर प्रयत्न हमे ही करना पड़ेगा हम अंधे होकर गुरु के भरोसे बैठ जाते है की जैसे विचार आते है कोई बात नही गुरु जी सब संभाल लेंगे इसी गफलत में अनंत जन्म बिता दिए ये भी बीत रहा है और बीत ही जायेगा अगर प्रयत्न ही करोगे तो बार बार आना पड़ेगा पर बिना खुद यत्न किये बात नही बनेगी ये बात आज समझ लो या करोड़ो जन्म बाद..
और कोई विकल्प नही है..मन को कैसा आहार दे रहे हो सावधान रहो..
प्रणाम जी
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