Thursday, September 24, 2015

वाणी

फेर कब जुदागी पाओगे, छोड़ के हक अर्स।
बैठे खेल में पिओगे, हक इस्क का रस ।।

हे साथ जी ! इस बात पर आप विचार कीजिए कि अब आपको ऐसा अवसर कभी भी दूसरी बार नहीं मिलने वाला है, जिसमें आप परमधाम को छोड़कर वियोग का अनुभव कर सकें और इस मायावी जगत् में रहते हुए भी परमात्मा के इश्क का रस पान कर सकें।
आत्म चक्षुओं द्वारा युगल स्वरूप को अपलक देखना ही इश्क का रसपान करना है। इस अवस्था की प्राप्ति बाह्य आडम्बर और नवधा भक्ति के कर्मकाण्डों से नहीं होती, बल्कि विरह के आंसुओं में युगल स्वरूप की शोभा को दिल में बसाने से होती है...

प्रणाम जी

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