*साकाम और निस्काम भक्ति वो नही है जो आजतक हमने सुना है या समझा है..*
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आज तक कि हमारी धारणा या मान्यता के अनुसार साकाम भक्ति का अर्थ है कोई सांसारीक कामना से परमात्मा की भक्ति करना, और निष्काम भक्ति का आर्थ है बिना किसी सांसारिक कामना के केवल परमात्म की चाह रखना या कामना करना..
और कोई प्रश्न करे कि कामना तो दोनो में है फिर निष्काम भक्ति कैसे हुई, तो हमारे पास कोई जवाब नही होता और अपनी बुद्धि से अटपटा जवाब देते हैं कि परमात्मा कि कामना दिव्य कामना है इसलिय ये कामना नही मानी जायगी इस कारण ये निष्काम भक्ति है..
*गलत बिल्कुल गलत*
*जानलो ये गलत धारणा या मान्यता है*
ध्यान दें भक्ति दो ही प्रकार की है साकाम और निष्काम, पर हमने साकाम भक्ति को बहोत निम्न स्तर पर लाकर माया का रूप बना दिया, साकाम को इतने निम्न स्तर पर मान्ने के कारण हमारी निष्काम भी अपने वास्तविक स्तर पर नही पहोंच पाई और हम वास्तविक निष्काम के स्तर तक नही पहोंच पाये , और निस्काम भक्ती से अनभिग्य हो गये..
हमारी साकाम भक्ति कि मान्यता के अनुसार अपनी कोई सांसारीक इच्छा के लिय परमात्मा कि भक्ती साकाम भक्ति है.. ध्यान दें इसमें भक्ति कया है ? इसे साकाम भक्ति कहना भक्ति का अपमान है .. ये तो परमात्मा की साकाम भक्ति कैसे कह सकते हो ?? गहनता से देखो, इसमें कामना याने इच्छा कि भक्ती है अर्थात केवल माया की चाह है, माया ही मांग रहे हो तो परमात्मा की भक्ति कैसे हुइ..??
ये साकाम भक्ति नही है ये माया है , इसे साकाम भक्ति नही कहना, ये तो कामना है , भक्ति नही ..
फिर साकाम और निष्काम भक्ति कया है ??
अब ध्यान दो पहले जानों कि साकाम भक्ति कया है .. *जिसे तुम निष्काम कहते हो वो है साकाम भक्ति* अर्थात केवल परमात्मा को चाहना या परमात्मा को पाने के लिय उसकी भक्ती करना साकाम भक्ति है ,, कयोंकी इसमे परमात्मा को पाने कि कामना है इसलिय ये साकाम भक्ति है..
अर्थात जो हमारे अनुसार निष्काम थी वो तो साकाम भक्ति है..
तो निष्काम भक्ति कया है???
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इसकि चर्चा कल.....
प्रणाम जी
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